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गुरुवन्दन-सूत्र
'भन्ते' शब्द से सम्बोधित किया गया है ! भन्ते का अर्थ भगवान् है । देखिए, 'करेमि भन्ते' आदि सूत्र |
'चैत्य' शब्द की अनेकार्थकता
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'चेइय' - प्राकृत शब्द का संस्कृत रूप चैत्य है । इसके सम्बन्ध में कुछ साम्प्रदायिक विवाद है । कुछ विद्वान् चैत्य का अर्थ ज्ञान करते है । इस परम्परा के अनुयायी स्थानकवासी है। दूसरे विद्वान् चैत्य का श्रर्थ प्रतिमा करते हैं । इस परम्परा के अनुयायी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक हैं । चैत्य शब्द अनेकार्थक है, अत प्रसंगानुसार ही इसका अर्थ ग्रहण किया जाता है । प्रस्तुत प्रसग मे कौनसा अर्थ अभिप्रेत है, इस पर थोडा विचार करना अत्यावश्यक है ।
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चैत्य का ज्ञान अर्थ करने मे तो कोई विवाद ही नही है । ज्ञान, प्रकाश का वाचक है । अतः गुरुदेव को 'ज्ञान' कहना, प्रकाश शब्द से सम्बोधित करना, सर्वथा औचित्यपूर्ण है । 'चिती सज्ञाने' धातु से चैत्य शब्द बनता है, जिसका अर्थ ज्ञान है ।
चैत्य का दूसरा अर्थ प्रतिमा भी यहाँ घटित ही है, प्रघटित नही । मूर्तिपूजक विद्वान् भी यहाँ चैत्य का अभिधेय अर्थ मूर्ति न करके, लक्षणा द्वारा मूर्ति सदृश पूजनीय अर्थ करते हैं । जिस प्रकार किसी मूर्ति पूजक पन्थ के अनुयायी को अपने इष्ट देव की प्रतिमा आदरणीय एव सत्करणीय होती है, उसी प्रकार गुरुदेव भी सत्करणीय हैं । यह उपमा है । उपमा लौकिक पदार्थों की भी दी जा सकती है, इसमे किसी सम्प्रदाय विशेप का अभिमत मान्य एवं श्रमान्य नही हो जाता । स्थानकवासी यदि यह अर्थ स्वीकार करें, तो कोई आपत्ति नही है । क्या हम ससार मे लोगो को अपने-अपने इष्टदेव की प्रतिमाओ का आदर-सत्कार करते नही देखते है ? क्या उपमा देने मे भी कुछ दोष है ? यहाँ तीर्थ कर की प्रतिमा के सदृश तो नही कहा है और न श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आचार्यों ने ही यह माना है | देखिए प्रभयदेव सूरि क्या लिखते है
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'चैत्यमिष्टदेवप्रतिमा, चैत्यमिव चैत्य पर्युपासयाम'
-भग० २ श०, १ उ० यह भगवती का स्थल भगवान् महावीर से सम्वन्ध रखता है ।