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गुरु वन्दन - सूत्र
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प्रज्ञान का अधकार
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यह तो केवल स्थूल द्रव्य अन्धकार है । परन्तु, एक और अन्धकार है, जो इससे अनन्त गुरण भयकर है। यदि वह अन्धकार विद्यमान हो, तो उसे हजारो दीपक, हजारो सूर्य भी नष्ट नही कर सकते । वह अन्धकार हमारे अतरग का है। उसका नाम अज्ञान है । प्रज्ञान- अन्धकार के कारण ही आज ससार मे भयकर मारामारी होती है । प्रत्येक प्राणी वासना के जाल मे फँसा हुआ तडप रहा है । मुक्ति का मार्ग कही दृष्टिगत ही नही होता । साधु को प्रसाधु, असाधु को साधु, देव को कुदेव, कुदेव को देव, धर्म को अधर्म, अधर्म को धर्म, श्रात्मा को जड और ज़ड को आत्मा समझते हुए यह ग्रात्मा अज्ञानता के कारण ठोकरो-पर-ठोकरें खाता हुआ अनादिकाल से भटक रहा है ।
सद्गुरु का महत्व
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सद्गुरु ही इस अज्ञान को दूर कर सकते है । हमारे प्राध्यात्मिक जीवन-मन्दिर के वे ही प्रकाशमान दीपक है । उनकी कृपा दृष्टि से ही हमे वह प्रकाश मिलता है, जिसको लेकर जीवन की विकट घाटियो को हम सानन्द पार सकते हैं । उक्त प्रकाश - कर्तृत्व गुण को लेकर ही वैयाकरणो ने गुरु शब्द की व्युत्पत्ति की है कि 'गु' शब्द अन्धकार का वाचक है औरा 'रु' शब्द विनाश का वाचक है । अत गुरु वह, जो अन्धकार का नाश करता है ।
आज के युग मे गुरु बहुत सस्ते हो रहे हैं । जन-गणना के अनुसार आजकल अकेले भारत मे ५६ लाख गुरुप्रो की फौज जनता के लिए अभिशाप बन रही है । अतएव जैन शास्त्रकार गुरु पद का महत्व ऊँचा बताते हुए उसके कर्तव्य को भी ऊँचा बता रहे हैं । गुरुपद के लिए न केला ज्ञान ही काफी है, और न अकेली क्रिया ही । ज्ञान और क्रिया का सुन्दर समन्वय ही गुरुत्व को सृष्टि कर सकता है | आज के गुरु लाखो की सम्पत्ति रखते हुए, भोग-विलास के मनमाने ग्रानन्द उठाते हुए जनता को वेदान्त का उपदेश देते फिरते है ससार के मिथ्या होने का ढिंढोरा पीटते फिरते है | भला, जो स्वय ग्रन्धा है, वह दूसरो को क्या मार्ग दिखलाएगा ? जो स्वय पगु है वह