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सामायिक-सूत्र
अधिक भोजन करने से शरीर मे आलस्य पैदा होता है, मन मे चचलता होती है, और अन्त मे इन सब बातो का असर ब्रह्मचर्य पर पड़ता है।
E-विभूषा-परिवर्जन-विभूषा का अर्थ अलकार एव श्रङ्गार होता है, और परिवर्जन का अर्थ त्याग होता है । अत. विभूषा-परिवर्जन का अर्थ 'शृगार का त्याग करना' हुआ। स्नान करना, इत्रफुलेल लगाना, भडकदार बढिया वस्त्र पहनना, इत्यादि कारणो से अपने मन मे भी आसक्ति की भावना जागृत होती है और देखने वालो के मन मे भी मोह का उद्रेक हो जाता है। कुम्हार को लाल रत्न मिला, साफ करके छप्पर पर रख दिया । सूर्य के प्रकाश मे ज्यो ही चमका, मास का टुकडा समझ कर चील उठाकर ले गई । श्रृङ्गारप्रेमी साधु के ब्रह्मचर्य का भी यही हाल होता है ।
चार कषाय का त्याग
__ कर्म-बन्ध का मुख्य कारण कपाय है। कषाय का शाब्दिक अर्थ होता है- 'कष-ससार । प्राय लाभ ।' अर्थात् जिससे ससार का लाभ हो, जन्म-मरण का चक्र वढता हो, वह कषाय है । मुख्य रूप से कपाय के चार प्रकार है
(१) क्रोध-क्रोध से प्रेम का नाश होता है। क्रोध क्षमा से दूर किया जा सकता है।
(२) मान-अहकार विनय का नाश करता है। नम्रता के द्वारा अहकार नष्ट किया जा सकता है।
(३) माया-माया का अर्थ कपट है । माया मित्रता का नाश करती है, आर्जव-सरलता से माया दूर की जा सकती है।
(४) लोभ-लोभ सबसे अधिक भयकर कषाय है । यह सभी सद्गुरगो का नाश करने वाला है । लोभ पर सतोष के द्वारा ही विजय प्राप्त की जा सकती है।
पांच महाव्रत
१--सव-प्राणातिपात-विरमरण-सव प्रकार से अर्थात् मन, वचन और शरीर से प्राणातिपात-जीव की हिंसा-का त्याग करना,