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________________ गुरु-गुण-स्मरण-सूत्र १६५ जाती है, वासना का वायु-मडल तैयार हो जाता है । अत बैठने वाले के मन मे विह्वलता आदि दोष पैदा हो सकते हैं । आजकल के वैज्ञानिक भी विद्य ुत के नाम से उक्त परिस्थिति को स्वीकार करते है । ४ - इन्द्रियाप्रयोग - स्त्री के मुख, नेत्र, हाथ, पैर आदि अवयवो की ओर देखने का प्रयत्न नही करना चाहिए । यदि प्रसग -वश कदाचित् दृष्टि पड भी जाय, तो शीघ्र ही हटा लेना चाहिए । सौन्दर्य के देखने से मन मे मोहनी जागृत होगी, काम-वासना उठेगी, अन्त मे ब्रह्मचर्य व्रत के भग की आशका भी उत्पन्न हो जाएगी । जिस प्रकार सूर्य की ओर देखने से आँखो का तेज घटता है, उसी प्रकार स्त्री के अवयवो को देखने से ब्रह्मचर्य का बल भी क्षीण हो जाता है । ६–कुड्यान्तर-दाम्पत्यवर्जन — एक दीवार के अन्तर से स्त्री-पुरुष रहते हो, तो वहाँ नही रहना । कुड्य का अर्थ दीवार है, अन्तर का अर्थ दूरी से है, और दाम्पत्य का अर्थ स्त्री-पुरुष का युगल है । पास रहने से श्रृङ्गार श्रादि के वचन सुनने पर काम जागृत हो सकता है । अग्नि के पास रहा हुग्रा मोम पिघल ही जाता है । ६ - पूर्व कोडित स्मृति - पहली काम-क्रीडाओ का स्मरण न करना । ब्रह्मचर्य धारण करने के पहले जो वासना का जीवन रहा है, स्त्रियो के साथ सासारिक सम्बन्ध कायम रहा है, उसको व्रती हो जाने के बाद कभी भी अपने चिन्तन मे नही लाना चाहिए। वासना का क्षेत्र बडा भयकर है | वासनाएँ भी जरा-सी स्मृति आ जाने पर पुनरुज्जीवित हो उठती है और साधना को नष्ट-भ्रष्ट कर डालती है । मादक पदार्थो का नशा स्मृति के द्वारा जागत होता है, यह सर्वसाधारण मे प्रसिद्ध है । ७ - प्रणीताभोजन - प्रणीत का अर्थ अति स्निग्ध है । प्रत प्रणीत भोजन का अर्थ हुआ कि जो भोजन प्रति स्निग्ध हो, कामोत्तेजक हो, वह ब्रह्मचारी को नही खाना चाहिए। पौष्टिक भोजन से शरीर मे जो कुछ विषय-वासना की विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, उन्हें हर कोई स्वानुभव से जान सकता है । जिस प्रकार सन्निपात का रोग घी खाने से भयंकर रूप धारण कर लेता है, उसी प्रकार विषय-वासना भी पौष्टिक पदार्थो के अमर्यादित सेवन से भडक उठती है । द- -- प्रतिमात्राभोग - प्रमाण से अधिक भोजन नही करना । भोजन का सयम, ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए रामबाण अस्त्र है । भूख से
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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