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सामायिक-सूत्र
पांच इन्द्रियो का दमन
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जीवात्मा को ससार सागर मे डुवाने वाली पाच इन्द्रियाँ हैंस्पर्शन इन्द्रिय- त्वचा, रसन इन्द्रिय - जिह्वा, घ्राण इन्द्रिय- नाक, चक्ष - ग्रॉख र श्रोत्र इन्द्रिय- कान । पाँचो इन्द्रियो के मुख्य विषय क्रमश इस प्रकार है - स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द | गुरु वह है जो उक्त विषयो मे समभाव रखे । यदि प्रिय हो, तो राग न करे और यदि प्रिय हो, तो प न करे ।
नवविध ब्रह्मचर्य
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पाच इन्द्रियो की चचलता रोक देने से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अपने-आप हो जाता है । तथापि ब्रह्मचर्य व्रत को अधिक दृढता के साथ निर्दोष पालन करने के लिए शास्त्र मे नव गुप्तियाँ बतलाई हैं । नव गुप्तियो को साधारण भाषा मे वाड भी कहते हैं । जिस प्रकार वाड अन्दर रही हुई वस्तु का सरक्षण करती है, उसी प्रकार नव गुप्तियाँ भी ब्रह्मचर्यव्रत का सरक्षण करती है ।
१ - विविक्त वसति - सेवा - एकान्त स्थान मे निवास करना । स्त्री, पशु, श्रीर नपु सक तीनो की काम चेप्टाएँ विकारोत्तेजक होती हैं, तब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए उक्त तीनो से रहित एकान्त शान्त स्थान में निवास करना चाहिए ।
२ - स्त्री- कथा - परिहार — स्त्रियो की कथा का परित्याग करना । स्त्री - कथा से मतलब यहाँ स्त्रियों की जाति, कुल, रूप, और वेषभूषा यादि के वर्णन से है । जिस प्रकार नीबू के वर्णन से जिह्वा मे से पानी वह निकलता है, उसी प्रकार स्त्री-कथा से भी हृदय में वासना का झरना वह निकलता है ।
३ - निषद्यानुपवेशन - निपद्या यानी स्त्री के बैठने की जगह, उस पर नही बैठना । शास्त्र मे कहा है कि जिस स्थान पर स्त्री वैठती हो, उसके उठ जाने के बाद भी दो घडी तक ब्रह्मचारी को वहाँ नही बैठना चाहिए | काररण, स्त्री के शरीर के सयोग से वहाँ उष्णता हो