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गुरु-गुण-स्मरण-सूत्र
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सद्गुरु कौन ?
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शास्त्रकारो ने सद्गुरु की महिमा का मुक्त कठ से गुणगान किया है | उनका कहना है कि प्रत्येक साधक को गुरु के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति का भाव रखना चाहिए । भला जो मनुष्य प्रत्यक्ष - सिद्ध महान् उपकार करने वाले एव माया के दुर्गम पथ को पार कर सयम-पथ पर पहुँचाने वाले अपने आराध्य सद्गुरु का ही भक्त नही है, वह परोक्ष-सिद्ध भगवान का भक्त कैसे हो सकेगा ? साधक पर सद्गुरु का इतना विशाल ऋरण है कि उसका कभी बदला चुकाया ही नही जा सकता । गुरुमहत्ता अपरम्पार है, अत प्रत्येक धर्म-साधना के प्रारम्भ मे सद्गुरु को श्रद्धा-भक्ति के साथ अभिवन्दन करना चाहिए | परन्तु प्रश्न है ? कौन-सा गुरु ? किसके चरणो मे नमस्कार ? सद्गुरु के चरणो मे, या सद्गुरु वेष धारी के चरणो मे ?
श्राज संसार मे, विशेष कर भारत मे, गुरु-रूप- धारी द्विपद जीवो की कोई साधारण - सी सीमित संख्या नही है । जिधर देखिए उधर ही गली-गली मे सैकडो गुरु- नामधारी महापुरुष घूम रहे हैं, जो भोलेभाले भक्तो को जाल मे फसाते है, भद्र महिलाओ के उन्नत जीवन को जादू टोने के वहम मे नष्ट कर देते हैं। कुछ दूसरे कारणो को गौरा रूप मे रक्खा जाय, तो भारत के पतन का यदि कोई मुख्य कारण है, तो वह गुरु ही है, ऐसा कहा जा सकता है | भला, जो दिन-रात भोगविलास में लगे रहते हैं, चढावे के रूप मे बड़ी से बडो भेटे लेते है, राजा का-सा ठाठ - वाट सजाए रखते है, माल - मलीदा खाते हैं, इतर - फुलेल लगाते है, नाटक सिनेमा देखते हैं, मद्य, गाँजा, भाँग, सुलफा आदि मादक पदार्थो का सेवन करते हैं, उन गुरुग्रो से देश का क्या भला हो सकता है ? जो स्वय अन्धा हो, वह दूसरो को क्या खाक मार्ग दिखाएगा ? अतएव प्रस्तुत-सूत्र मे बतलाया है कि सच्चे गुरु कौन हैं ? किनको वन्दन करना चाहिए ? प्रत्येक साधक को दृढ प्रतिज्ञ होना चाहिए कि "वह सूत्रोक्त छत्तीस गुरणो के धर्ता महात्माओ को ही अपना धर्म - गुरु मानेगा, अन्य ससारी को नही ।" गुरु-वन्दन से पहले उक्त प्रतिज्ञा का स्मरण करना एव गुरु के गुणो का सकल्प करना अत्यावश्यक है । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह सूत्र-पाठ, सामायिक करते समय गुरु वन्दन से पहले पढा जाता है ।