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सामायिक-सूत्र
चउविहकसायमुक्को-चार प्रकार के कषाय से मुक्त इन-इन अट्ठारस-गुणेहि सजुत्तो-अट्ठारह गुणो से सयुक्त पंच महन्वय-जुत्तो-पॉच महाव्रतो से युक्त पचविहायारपालणसमत्थो-पाच प्रकार का आचार पालने मे समर्थ पंचसमित्रो-पाच समिति वाले तिगुत्तो-तीन गुप्ति वाले छत्तीसगुणो-छत्तीस गुणो वाले सच्चे त्यागी मज्भ-मेरे गुरु - गुरु हैं
भावार्थ पाँच इन्द्रियो के वैषयिक चाचल्य को रोकने वाले, ब्रह्मचर्य-व्रत की नवविध गुप्तियो को-नौ बाडो को धारण करने वाले, क्रोध आदि चार प्रकार की कषायो से मुक्त, इस प्रकार अठारह गुणो से सयुक्त
-अहिंसा आदि पाँच महाव्रतो से युक्त, पाँच प्राचार के पालन करने में समर्थ, पाँच समिति और तीन गुप्ति के धारण करने वाले, अर्थात् उक्त छत्तीस गुणो वाले श्रेष्ठ साधु मेरे गुरु हैं ।
विवेचन मनुप्य का महान् एव उन्नत मस्तक, जो अन्यत्र किसी भी गति एव योनि मे कहीं भी प्राप्त नही होता, क्या वह हर किसी के चरणो मे झुकने के लिए है ? नहीं, ऐसा नही हो सकता | मनुष्य का मस्तक विचारो का सर्वश्रेष्ठ केन्द्र है। वह नरक, तिर्यंच, स्वर्ग और मोक्ष सभी स्थितियो का स्रष्टा है। दृश्य-जगत् मे यह जो कुछ भी वैभव विखरा पडा है, सव उसी की उपज है। अतएव, यदि वह भी अपने
आपको विचार-शून्य बना कर हर किसी के चरणो की गुलामी स्वीकार करने लगे, तो इससे बढकर मनुष्य का और क्या पतन हो मकता है ?