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गुरु-गण-स्मरण-सत्र
ཁ་འདུག་ཟས་ལ་བཟང་
[१] पंचिदिय-संवरणो,
तह नवविह-बंभचेर-गुत्तिधरो। चउविह-कसायमुक्को, इस अट्ठारसगुणेहि सजुत्तो।
[ २ ] पंच मह वय-जुत्तो,
पंचविहायारपालगसमत्थो । पचसमियो तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरू मज्झ ॥
शब्दार्थ पचिदिय-सवरणो-~-पाच इन्द्रियो को अर्थात् पाच इन्द्रियो के
विषयो को रोकनेवाले, वश मे करने वाले तह–तथा इसी प्रकार नव-विह-बभचेर गुत्तिघरो–नव प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्तियो
को धारण करने वाले