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सम्यक्त्व-सत्र
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अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुयो। जिरण-पण्णत्तं तत्त, इअ सन्मत्तं मए गहियं ।।
शब्दार्थ जावजीव-जीवन पर्यन्त
जिण-पण्णतवीतराग देव
का प्ररूपित तत्त्व ही मह मेरे
तत्ततत्त्व है, धर्म है मरिहतो=अरिहन्त भगवान्
इप्र=यह देवो देव हैं
सम्मत्त-सम्यक्त्व सुसाहुणो-श्रेष्ठ साधु
मे=मैंने गुरुणो गुरु हैं
गहिय=ग्रहण किया भावार्थ
राग-द्वेष के जीतनेवाले जिन अर्थात श्री अरिहन्त भगवान् मेरे देव हैं. जीवनपर्यन्त सयम की साधना करने वाले सच्चे साधु मेरे गुरु है,श्री जिन भगवान का बताया हुआ अहिंसा, सत्य आदि धर्म ही मेरा धर्म है-यह देव, गुरु, धर्म पर श्रद्धा-स्वरूप सम्यक्त्व-ब्रत मैंने यावज्जीवन के लिए ग्रहण किया।