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सामायिक-सूत्र
चूलिका
चूलिका में पाँचो पदो के नमस्कार की महिमा कथन की गई है । मूल नमस्कार मंत्र तो पाँच पद तक ही है, किन्तु यह चूलिका भी कुछ कम महत्व की नही है ।
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चूलिका में बताया गया है कि पाँच परमेष्ठी को नमस्कार करने से सब प्रकार के पापो का नाश हो जाता है । नाश ही नही, प्रणाश हो जाता है । प्रणाश का अर्थ है, पूर्ण रूप से नाश, सदा के लिए नाण कितना उत्कृष्ट प्रयोजन है ।
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चूलिका में पहले पापो का नाश बतलाया है, और बाद मे मंगल का उल्लेख किया है । पहले दो पदो मे हेतु का उल्लेख है, तो अन्तिम दो पदो मे कार्य का, फल का वर्णन है । जब आत्मा पापकालिमा से पूर्णतया साफ हो जाती है, तो फिर सर्वत्र सर्वदा आत्मा का मंगल ही मंगल है, कल्याण - ही - कल्याण है | नमस्कार मंत्र हमे पाप-नाशरूप श्रभावात्मक स्थिति पर ही नही पहुँचाता, प्रत्युत पूर्व - मंगल का विधान करके हमे पूर्ण भावात्मक स्थिति पर भी पहुँचाता है ।
द्वैत-अद्वैत नमस्कार
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ग्राचार्य जयसेन नमस्कार पर विवेचन करते हुए, नमस्कार के दो भेद बतलाते है -- एक द्वैत नमस्कार और दूसरा अद्वैत । जहाँ उपास्य और उपासक मे भेद की प्रतीति रहती है, मैं उपासना करने वाला हूँ और यह रिहन्त आदि मेरे उपास्य हैं - यह द्वैत रहता है, वह द्वैत नमस्कार है । और जव कि राग-द्वेष के विकल्प नष्ट हो जाने पर चिद्भाव की इतनी अधिक स्थिरता हो जाती है कि आत्मा अपनेआपको ही अपना उपास्य अरिहन्त प्रादि रूप समझता है और उसे केवल स्व-स्वरूप का ही ध्यान रहता है, वह अद्वैत नमस्कार कहलाता है । दोनो मे द्वैत नमस्कार ही श्रेष्ठ है । द्वैत नमस्कार, अद्वैत का साधन - मात्र है । पहले पहल साधक भेद-प्रधान साधना करता है, और वाद मे ज्योज्यो ग्रागे प्रगति करता है, त्यो त्यो अभेद-प्रधान साधक होता जाता है । पूर्ण प्रभेदसाधना अरिहन्त दशा मे प्राप्त होती है । प्रस्तुत सन्दर्भ मे प्राचार्य जयसेन से कहा है