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________________ सामायिक-सूत्र पढम-मुख्य मंगलं मगल हवइ-है भावार्थ अरिहन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और लोक मे-समग्र मानवक्षेत्र मे वर्तमान समस्त साधु-साध्वियो को-अर्थात् धर्म-साधको को मेरा नमस्कार हो। उक्त पाच परमेष्ठी महान् आत्मानो को किया हुया यह नमस्कार, सब प्रकार के पापो को पूर्णतया नाश करनेवाला है और विश्व के सब मगलो मे प्रथम-प्रधान मगल है। विवेचन मानव-जीवन मे नमस्कार को बहुत ऊ चा स्थान प्राप्त है । मनुष्य के हृदय की कोमलता, सरसता, गुरण-ग्राहकता एव भावुकता का पता तभी लगता है, जबकि वह अपने से श्रेष्ठ एव पवित्र महान् आत्मायो को भक्ति-भाव से गद्गद् होकर नमस्कार करता है, गुणो के समक्ष अपनी अहता का त्याग कर गुरणी के चरणो मे अपने-अापको सर्वतोभावेन अर्पण कर देता है । नमस्कार का अर्थ नमस्कार, नम्रता एव गुण-ग्राहकता का विशुद्ध प्रतीक है । नमस्कार की व्याख्या करते हुए वैयाकरण कहा करते है 'मत्तस्त्वमुत्कृष्टस्त्वत्तोऽहमपकृष्टः, एतदद्वय बोधनानुकूल व्यापारी हि नमः शब्दार्थः।" उक्त वाक्य का भावार्थ यह है कि नमस्कार शब्द से यह अर्थ ध्वनित होता है- मेरे से पाप उत्कृष्ट हैं, गुणो मे बडे है और मैं आपसे अपकृष्ट हूँ, गुरणो मे हीन हूँ। ___ एक बात ध्यान मे रहे, यहाँ हीनता और महत्ता स्वामी सेवक-जैसी नही है । जैन-धर्म मे इस प्रकार की दास मनोवृत्ति वाले निम्न श्रेणी के सम्वन्धो का स्वप्न मे भी कही स्थान नहीं है । यहाँ हीनता और महत्ताका
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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