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________________ उपसहार १३१ मिला है आज तक किसी साधक को ? प्रसिद्ध ब्राह्मणकार महीदास ने अपने ऐतरेय ब्राह्मण (३२1३) मे कहा है- 'चरैवेति 'चरैवेति' – चले चलो, चले चलो ' साधना के मार्ग मे पहले दृढता से चलना होता है, फिर साध्य की प्राप्ति का आनन्द उठाया जाता है । आजकल यह वृत्ति बडी भयकर चल रही है कि " हल्दी लगे न फिटकरी, रग चोखा ही चोखा । " करना कराना कुछ न पड े, और कार्य सिद्धि हमारे चरणो मे सादर उपस्थित हो जाय कल्पना कीजिये, आप के सामने एक सुन्दर आम का वृक्ष है । उस पर पके हुए रसदार फल लगे हुए है | आपकी इच्छा है, ग्राम खाने की । परन्तु आप अपने स्थान से न उठे, ग्राम तक न पहुचे, न ऊपर चढें, न फल तोड े, न चूसे और चाहे यह कि ग्राम का मधुर रस चख ले | क्या ऐसा हो सकता है कभी ? कदापि नही । ग्राम खाने तक जितने व्यापार है, यह ठीक है कि उनमे श्रानन्द नही है । परन्तु इसी पर कोई कहे कि वृक्ष तक पहुचने तक मे ग्राम का स्वाद नही मिलता, प्रत में नही जाऊँगा, नही चढूगा, नही फल तोडूंगा, तो बताइए उसे क्या कहा जाय ? यही बात सामायिक से पहले तर्क उठाने वालो की भी है । उनका समाधान नही हो सकता । सामायिक एक साधना है, पहले-पहल सम्भव है, आनन्द न आए | परन्तु, ज्यो ही आगे बढेगे, आध्यात्मिक क्षेत्र मे प्रगति करेंगे, आपको उत्तरोत्तर अधिकाधिक आनन्द प्राप्त होता जायेगा । तट पर न बैठे रहिए | समुद्र मे गहरी डुबकी लगाइए । अपार रत्नराशि आपको मालामाल क़र देगी । सामायिक का महत्व समझिए # एक बात और भी है, जिस पर लक्ष्य देना आवश्यक है । सामायिक एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है, अत सामायिक सम्बन्धी दो घडी का अनमोल काल व्यर्थ ही प्रालस्य प्रमाद, अशुभ एव निन्द्य प्रवृत्तियो मे नही बिताना चाहिए । प्राजकल सामायिक तो की जाती है, किन्तु उसकी महनीय मर्यादा का पालन नही किया जाता । बहुत बार देखा गया है कि लोग सामायिक मे दुनियादारी की अटसट बातें करने लग जाते है, आपस मे गमागरम बहस करते हुए झगडने लगते हैं,
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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