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सामायिक-प्रवचन
पाच-सात दिन मे ही शरीर की हड्डी-हड्डी दुखने लगेगी, दर्द से सिर फटने लगेगा, स्फूर्ति लुप्त हो जायेगी, मृत्यु खड़ी सामने नाचने लगेगी। तब पता चलेगा कि जीवन मे निद्रा की कितनी आवश्यकता है ? निद्रा से स्वास्थ्य अच्छा रहता है, कठिन-से-कठिन कार्य करने के लिये साहस एव स्फति प्राप्त होती है, शरीर और मन मे उदग्र नवजीवन का सचार हो जाता है। निद्रा मे ऐसी क्या शक्ति है ? इसके उत्तर मे निवेदन है कि मन का व्यापार बद होने से ही निद्रा पाती है। जब तक मन चचल रहता है, जब तक कोई चिन्ता या शोक मन मे चक्कर काटता रहता है, तब तक मनुष्य निद्रा का आनन्द नही ले सकता। चित्त वत्तियो की स्तब्धता ही-इधर उधर के विकल्पो की लहरो का अभाव ही-श्रेष्ठ निद्रा है, सुषुप्ति है।
सामायिक :योगनिद्रा
आप कहेगे, सामायिक के प्रसग में निद्रा की क्या चर्चा ? मैं कहूगा--सामायिक भी एक प्रकार की योग-निद्रा है, आध्यात्मिक सुषुप्ति है, चित्त-वृत्तियो के निरोध की साधना है। सामान्य निद्रा
और योग-निद्रा में इतना ही अन्तर है कि निद्रा अज्ञान एवं प्रमादमूलक होती है, जबकि सामायिक-रूप योगनिद्रा ज्ञान एव जागृतिमूलक है । सामायिक मे चचल मन की ज्ञान-मूलक स्थिरता होती है, अत इससे आध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत कुछ उत्साह, बल, दीप्ति एव प्रस्फूर्ति की प्राप्ति होती है । सामायिक से क्या लाभ है ? इस प्रश्न को उठाने बाले सज्जन इस दिशा मे विशेष चिन्तन का प्रयत्न करें।
धैर्यपूर्वक चलते रहिए
प्रश्न हो सकता है-चित्त-वृत्तिका निरोध हो जाने पर अर्थात् एक लक्ष्य पर मन को स्थिर कर लेने पर तो यह अानन्द मिल सकता है। परन्तु जब तक मन स्थिर न हो, चित्त-वृत्ति शात न हो, तब तक तो इससे कोई लाभ नही ? उत्तर है-बिना साधन के साध्य की प्राप्ति नही हो सकती। बिना श्रम के, बिना प्रयत्न के कभी कुछ