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________________ १२६ किसी भी वस्तु की महत्ता का पूरा परिचय, उसे आचरण में लाने से ही हो सकता है । पुस्तके तो केवल आपको साधारण सी झाकी ही दिखा सकती है । अस्तु, सामायिक की महत्ता आपको सामायिक करने पर ही मालूम हो सकती है। मिश्री की डली हाथ मे रखने-भर से मधुरता नही दे सकती, हा, मुँह मे डालिये, आप आनन्दविभोर हो जायेंगे । यह आचरण का शास्त्र है । आचार-हीन को कोई भी शास्त्र आध्यात्मिक तेज अर्पण नही कर सकता । अत आपका कर्त्तव्य है कि प्रतिदिन सामायिक करने का अभ्यास करे । अभ्यास करते समय पुस्तक मे बताए गये नियमो की ओर लक्ष्य देते रहे । प्रारम्भ मे भले ही आप कुछ आनन्द न प्राप्त कर सके, परन्तु ज्यो ही दृढता के साथ प्रतिदिन का अभ्यास चालू रखेगे, तो अवश्य आध्यात्मिक क्षेत्र मे प्रगति कर सकेगे । सामायिक कोई साधारण धार्मिक क्रियाकाण्ड नही है, यह एक उच्चकोटि की धर्म - साधना है । अत सुन्दर पद्धति से किया गया हमारा सामायिक धर्म, हमे सारा दिन काम आ सके, इतना मानसिक बल और शान्ति देने वाला, एक महान् शक्तिशाली अखण्ड भरना है । उपसहार सामायिक सौदेबाजी नहीं है # ग्राजकल एक नास्तिकता फैल रही है कि सामायिक क्यों करें ? सामायिक से क्या लाभ ? प्रतिदिन दो घडी का समय खर्च करने के बदले मे हमे क्या मिलता है ? आप इन कल्पनाओ से अलग रहिये । अध्यात्मिक क्षेत्र के लिए यह वरिणक् वृत्ति बडी ही घातक है । एक रुपये के बदले मे एक रुपये की चीज लेने के लिये झगडना, बाजार मे तो ठीक हो सकता है, धर्म मे नही । यह मजदूरी नही है । यह तो मानव जीवन के उत्थान की सर्व श्र ेष्ठ साधना है । यहाँ सौदेबाजी नही, प्रत्युत जीवन को साधना के प्रति सर्वतोभावेन समर्पण करना है । प्रस्तुत साधना का यही मुख्य उद्देश्य है । भले ही कुछ देर के लिए आपको स्थूल एव दृष्ट लाभ न प्राप्त हो सके, परन्तु सूक्ष्म एव दृष्ट लाभ तो इतना बडा होता है कि जिसकी कोई उपमा नही । यदि कोई हठाग्रही यह कहे कि " निद्रा मे जो छह-सात घंटे चले जाते है, उसमे कोई स्थूल द्रव्य की प्राप्ति तो नही होती, प्रत मैं निद्रा ही न लूगा " - तो, उस मूर्ख का क्या हाल होगा ? सर्व नाश !
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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