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उपसंहार
सामायिक के मूल पाठो पर विवेचन करने के बाद मेरे हृदय मे एक विचार उठा कि "आज की जनता में सामायिक के सम्बन्ध मे बहुत ही कम जानकारी है, अत प्रस्तावना के रूप मे एक साधारण सा पुरोवचन लिखना अच्छा होगा।" अस्तु, पुरोवचन लिखने बैठ गया और मूल आगमो, टीकाओ, स्वतन्त्र ग्रन्थो एव इधर-उधर की पुस्तको से जो सामग्री मिलती गई, लिखता चला गया । फलस्वरूप पुरोवचन अाशा से कुछ अधिक लम्बा हो गया, फिर भी सामायिक के सम्बन्ध मे कुछ अधिक प्रकाश नही डाल सका । जैन-साहित्य में सामायिक को सम्पूर्ण द्वादशाङ्गी का मूल माना गया है, और इस पर पूर्वाचार्यों ने इतना अधिक लिखा है कि जिसकी कोई सीमा नही वाँधी जा सकती। फिर भी, 'यावद् बुद्धिबलोदयम्' जो कुछ, सग्रह कर पाया हूँ, सन्तोषी पाठक उसी पर से सामायिक की महत्ता की झाँकी देखने की कृपा करे ।
साधना से प्रानन्द
अव पुरोवचन (सामायिक-प्रवचन) का उपसहार चल रहा है, अत प्रेमी पाठको को लम्बी बातो मे न ले जाते हुए, सक्षेप मे, एक-दो बातो की ओर ही लक्ष्य कराना है। हमारा काम आप के समक्ष प्रादर्श रख देने भर का है, उस पर चलना या न चलना आप के अपने सकल्पो के ऊपर है--"प्रवृत्तिसारा खलु मादृशा गिर ।' १ किरातार्जुनीय ११२५