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सामायिक-प्रवचन
गन्दी एव कुत्सित विकारोत्तेजक पुस्तके पढते है, हँसी-मजाक करते है, सोने लगते है, आदि आदि । उनकी दृष्टि मे जैसे-तैसे दो घडी का समय गुजार देना ही सामायिक है । यही हमारी अज्ञानता है, जो श्राज सामायिक के महान् प्रादर्श को पाकर भी हम उन्नत नही हो पाते, श्राध्यात्मिक उच्च भूमिका पर पहुच नही पाते ।
हां तो सामायिक में हमे बडी सावधानी के साथ अन्तर्जगत् मे प्रवेश करना चाहिए । बाह्य जीवन की ओर अभिमुख रहने से सामायिक की विधि का पूर्णरूपेण पालन नही हो सकता । अस्तु, सामायिक मे भगवान-तीर्थ कर देव की स्तुति भक्तामर आदि स्तोत्रो के द्वारा करनी चाहिए, ताकि ग्रात्मा मे श्रद्धा का पूर्व तेज प्रकट हो सके । महापुरुषो के जीवन की झाँकियो का विचार करना चाहिए, ताकि मन की श्राखो के समक्ष प्राध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो सके। पवित्र धर्म-पुस्तको का अध्ययन-चिन्तन, मनन एव नवकार मंत्र का जप करना चाहिए, ताकि हमारी अज्ञानता और अश्रद्धा का अन्धकार दूर हो | यदि इस प्रकार सामायिक का पवित्र समय बिताया जाये, तो अवश्य ही आत्मा नि यस् प्राप्त कर सकेगी, परमात्मा भाव के पवित्र पद पर पहुच सकेगी।
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