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________________ सामायिक में ध्यान ११ε बना सकता है और उन पर मन को स्थिर करने का प्रयत्न कर सकता है । उदाहरण स्वरूप हम यहाँ एक विधि का उल्लेख करते है, जो जैन योग साधना मे 'सिद्ध चक्र' के नाम से प्रसिद्ध है । I सर्व प्रथम ध्यानयोग्य ग्रासन से स्थिर बैठकर हृदयकमल पर अष्टदलश्वेतकमल की कल्पना करनी चाहिए । जब प्रष्ट पखुडियो की स्पष्ट कल्पना होने लगे, मम उस पर जम जाए, तब कमल की कणिका ( कमल का मध्यभाग, बीजकोप) पर 'नमो अरिहंताण' की कल्पना करे । फिर कमल की पूर्वादि चारो दिशाओ की पखुडियो पर क्रमश 'नमो सिद्धाण' 'नमो आयरियाण' 'नमो उवज्झायारण' एव 'नमो लोए सव्वसाहूण' का ध्यान केन्द्रित करे । इसके पश्चात ईशानकोण आदि विदिशाओ की चार पखडियो पर क्रमश 'नमो गारणस्स' 'नमो दसरणस्स' 'नमो तवस्स' 'नमो चरित्तस्स' की कल्पना करनी चाहिए । योगशास्त्र (८, ३३-३४ ) मे आचार्य हेमचन्द्र ने 'गारणस्स' आदि के स्थान पर 'एसो पंचरणमुक्करो आदि चूलिका पदो की स्थापना करने की सूचना की है । स्पष्टता के लिये निम्न चित्र देखिये । णमो णमो तवस्स णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं 스리그집트 मात LAYE राजान सिद्धचक्र णाणस्स णमो आयरियाणं णमो ܩܢ
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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