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________________ २१ प्राकृत भाषा में ही क्यों ? सामायिक के पाठ भारत की बहुत प्राचीन प्राकृत भाषा अर्द्ध मागधी में हैं । इस सम्बन्ध मे आजकल तर्क किया जा रहा है कि हमे तो भावो से मतलब है, शब्दो के पीछे बँधे रहने से क्या लाभ ? मागधी के गूढ पाठो को तोते की तरह पढते रहने से हमे कुछ भी भाव पल्ले नही पडते । अत अपनी अपनी गुजराती, मराठी, हिन्दी आदि लोकभाषाओ मे पाठो को पढना ही लाभ-प्रद है। महापुरुषो की वारणी प्रश्न बहुत सुन्दर है, किन्तु अधिक गम्भीर विचारणा के समक्ष फीका पड़ जाता है । महापुरुषो की वाणी मे और जन-साधारण की वाणी मे बडा अन्तर होता है । महापुरुषो की वाणी के पीछे उनके प्रौढ, सदाचारमय जीवन के गम्भीर अनुभव रहते है, जब कि जनसाधारण की वाणी जीवन के बहुत ऊपर के स्थूल स्तर से ही सम्बन्ध रखती है । यही कारण है कि महापुरुषो के सीधे-सादे साधारण शब्द भी हृदय मे असर कर जाते है, जीवन की धारा बदल देते है, भयकर-से भयकर पापी को भी धर्मात्मा और सदाचारी बना देते हैं, जब कि साधारण मनुष्यो की अलकारमयी लच्छेदार वाणी भी कुछ असर नही कर पाती । क्या कारण है, जो महान् आत्मानो की वाणी हजारो-लाखो वर्षों के पुराने युग से आज तक बराबर जीवित चली आरही है, और आजकल के लोगो
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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