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________________ पूर्व और उत्तर दिशा ही क्यो ? पूर्वाचार्यों चुम्बक को अप कोई विशेष शातएव मानना उत्तर दिश मे है । अत पूर्व दिशा जहाँ प्रगति की, हल-चल की सन्देशवाहिका है, वहाँ उत्तर दिशा स्थिरता, दृढता, निश्चयात्मकता एव अचल आदर्श की प्रतीक है। जीवन-सग्राम मे गति के साथ स्थिरता, हलचल के साथ शान्ति और स्वस्थता अत्यन्त अपेक्षित है। केवल गति और केवल स्थिरता जीवन को पूर्ण नही बनाती, किन्तु दोनो का मेल ही जीवन को ऊँचा उठाता है । प्रगति और दृढता के विना कोई भी मनुष्य किसी भी प्रकार की उन्नति नही प्राप्त कर सकता। ___उत्तर दिशा की चमत्कारिक शक्ति के सम्बन्ध मे एक प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। ध्रुव-यन्त्र यानी कुतुबनुमा मे जो लोह-चुम्बक की सुई होती है, वह हमेशा उत्तर की ओर रहती है । लोह चुम्बक की सुई जड पदार्थ है, अत उसे स्वय तो उत्तर, दक्षिण का कोई परिज्ञान नही, जो उधर घूम जाए। अतएव मानना होगा कि उत्तर दिशा मे ही ऐसी कोई विशेष शक्ति व आर्कषण है, जो, सदैव लोह-चुम्बक को अपनी ओर आकृष्ट किये रहती है। हमारे पूर्वाचार्यों के मन मे कही यह तो नही था कि यह शक्ति मनुष्य पर भी अपना कुछ प्रभाव डालती है ? भौतिक दृष्टि से भी दक्षिण दिशा की ओर शक्ति की क्षीणता तथा उत्तर दिशा की ओर शक्ति की अधिकता प्रतीत होती है। दक्षिण देश के लोग कुछ दुर्बल एव कृष्ण वर्ण होते है। उत्तर दिशा के बलवान एव गौरवर्ण होते है। इस पर से अनुमान किया जा सकता है कि अवश्य ही मनुष्यो के खान-पान, चाल-चलन, रहनसहन एव सबलता-निर्बलता आदि पर दक्षिण और उत्तर दिशा का कोई विशेष प्रभाव पड़ता है। आज भी पुराने विचारो के भारतीय दक्षिण और पश्चिम को पैर करके सोना पसद नहीं करते । जैन सस्कृति ही नही, वैदिक-सस्कृति में भी पूर्व और उत्तर दिशा का ही गौरव गान किया गया है । दक्षिण यम की दिशा मानी है और पश्चिम वरुण की। ये दोनो देव क्रूर प्रकृति के माने गये है । शतपथ ब्राह्मण मे पूर्व देवतायो की, और उत्तर मनुष्यो की दिशा कथन की गई है भौतिक दृष्टि से भारी शक्ति की अधिकार है। उत्तर ।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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