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सामायिक प्रवचन
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जगा सकता क्या कभी किसी कारण से सुप्त एव अवनत हुए अपने जीवन को जागृत एव उन्नत नही कर सकता ? अवश्य कर सकता है । मनुष्य महान् है, वह जीता जागता चलता-फिरता ईश्वर है । उसकी अलौकिक शक्तियाँ सोई पडी है । जिस दिन वे जागृत होगी, जीवन मे सब ओर मगल ही मंगल नजर आएगा। पूर्व दिशा हमे सकेत करती है कि मनुष्य अपने पुरुषार्थ के बल पर, अपनी इच्छा के अनुसार, अभ्युदय प्राप्त कर सकता है । वह सदा पतित और हीन दशा मे रहने के लिए नही है, प्रत्युत पतन से उत्थान की ओर अग्रसर होना, उसका जन्म सिद्ध अधिकार है ।
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उत्तर दिशा : उच्चता व दृढता का श्रात्म बोध
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उत्तर दिशा - उत् अर्थात् उच्चता से तर- अधिक जो भाव होता है, वह उत्तर दिशा से ध्वनित होता है, तो उत्तर का अर्थ हुआ - ऊँची गति, ऊँचा जीवन, ऊँचा आदर्श पाने का संकेत । शरीर शास्त्र की दृष्टि से मनुष्य का हृदय भी वॉर्ड बगल की ओर है,
त वह उत्तर है । मानव शरीर मे हृदय का स्थान वहुत ऊँचा माना गया है । वह एक प्रकार से आत्मा का केन्द्र ही है । जिसका हृदय जैसा ऊँच-नीच अथवा शुद्ध-अशुद्ध होता है, वह वैसा ही वन जाता है । मनुष्य के पास जो भक्ति, श्रद्धा, विश्वास और पवित्र भावना का भाग है, वह लौकिक दृष्टि से भी उत्तर दिशा मे - हृदय में ही है । इसी ग्राशय से सभवत यजुर्वेद के मत्र द्रष्टा ने कहा है- इदमुत्तरात् स्व । - यजुर्वेद १३।५७
उत्तर दिशा में स्वर्ग है अर्थात् हृदय की उत्तर अर्थात उत्तम विचार दृष्टि में ही स्वर्ग है । अस्तु, उत्तर दिशा हमे सकेत करती है कि हम हृदय को विशाल, उदार, उच्च एव पवित्र बनाएँ ।
उत्तर दिशा का दूसरा नाम ध्रुव दिशा भी है। प्रसिद्ध ध्रुव नक्षय, जो अपने केन्द्र पर ही रहता है, इधर-उधर नही होता,