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पूर्व और उत्तर दिशा ही क्यो ?
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पूर्वदिशा प्रगति की प्रतीक
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धातु का । 'प्र'
प्राची दिशा -आगे बढना, उन्नति करना, जाना - यह प्राञ्च- 'प्र' पूर्वक 'अञ्चु ' जिससे पूर्वदिशावाचक प्राची शब्द बना है आधिक्य, आगे, सम्मुख है । 'अञ्चु ' का अर्थ गति और पूजन है । अर्थात् जाना, बढना, प्रगति करना, चलना, सत्कार और पूजा करना है । इस प्रकार प्राची शब्द का अर्थ हुआ आगे बढना, उन्नति करना, प्रगति करना, अभ्युदय को प्राप्त करना, ऊपर चढना आदि ।
अग्रभाग मे हो मूल अर्थ है, का अर्थ प्रकर्ष,
पूर्व दिशा का यह गौरवमय वैभव प्रात काल अथवा रात्रि के समय अच्छी तरह ध्यान मे आ सकता है । प्रात काल पूर्व दिशा की ओर मुख कीजिए, आप देखेंगे कि अनेकानेक चमकते हुए तारा मण्डल पूर्व की ओर से उदय होकर अनन्त आकाश की ओर चढ रहे है, अपना सौम्य और शीतल प्रकाश फैला रहे है । कितना प्रभुत दृश्य होता है वह । सर्वप्रथम रात्रि के सघन अन्धकार को चीर कर अरुण प्रभा का उदय भी पूर्व दिशा से होता है । वह अरुणिमा कितनी मनोमोहक होती है । सहस्ररश्मि सूर्य का अमित आलोक भी इसी पूर्व दिशा की देन है । तमोगुणस्वरूप अन्धकार का नाश करके सत्त्वगुण प्रधान प्रकाश जब चारो ओर अपनी उज्ज्वल किरणे फैला देता है, तो सरोवरो मे कमल खिल उठते है, वृक्षो पर पक्षी चहचहाने लगते है, सुप्त ससार अँगडाई लेकर खडा हो जाता है, प्रकृति के अरण अरण मे नवजीवन का सचार हो जाता है ।
हाँ, तो पूर्व दिशा हमे उदय-मार्ग की सूचना देती है, अपनी तेजस्विता बढाने का उपदेश करती है । एक समय का प्रस्त हुआ सूर्य पुन अभ्युदय को प्राप्त होता है, और अपने दिव्य तेज से ससार को जगमगा देता है । एक समय का क्षीण हुआ चन्द्रमा पुन पूर्णिमा के दिन पूर्ण मण्डल के साथ उदय होकर ससार को दुग्ध-धवल चाँदनी से नहला देता है । इसी प्रकार अनेकानेक तारक अस्तगत होकर भी पुन अपने सामर्थ्य से उदय हो जाते है, तो क्या मनुष्य अपने सुप्त अन्तस्तेज को नही