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प्रासन कैसा?
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आसनो के सम्बन्ध मे विशेष जानकारी के लिए प्राचीन योगशास्त्र आदि ग्रन्थो का अवलोकन करना अधिक अच्छा होगा। यदि पाठक इतनी दूर न जाना चाहे, तो उन्हे लेखक की 'महामंत्रनवकार' नामक पुस्तक से भी थोडा-सा आवश्यक परिचय मिल सकेगा। यहाँ तो केवल दो-तीन सुप्रसिद्ध आसनो का उल्लेख ही पर्याप्त रहेगा।
१ सिद्धासन-बाएं पैर की एडी से जननेन्द्रिय और गुदा के वीच का स्थान को दबा कर दाहिने पैर की एडी से जननेन्द्रिय के ऊपर के प्रदेश को दबाना, ठुड्डी को हृदय मे जमाना, और देह को सीधा तना हुआ रख कर दोनो भौंहो के बीच मे दृष्टि को केन्द्रित करना, सिद्धासन है।
२ पद्मासन-बायी जाघ पर दाहिना पैर और दाहिनी जाघ पर बायां पैर रखना, फिर दोनो हाथो को लम्बा करके दोनो घुटनो पर ज्ञानमुद्रा आदि के रूप मे चित रखना अथवा दोनो हाथो की हथेलियो को नाभि के नीचे ध्यान मुद्रा मे रखना, पद्मासन है। हथेली पर हथेली रखते समय बाए हाथ की हथेली के ऊपर दाहिने हाथ की हथेली रखने का ध्यान रहना चाहिए।
३ पर्य कासन-दाहिना पैर बायी जाघ के नीचे और बाया पैर दाहिनी जाघ के नीचे दबा कर बैठना, पर्यकासन है । पयंकासन का दूसरा नाम सुखासन भी है। सर्वसाधारण इसे पालथी-पालथी भी कहते है। * * *