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________________ आसन कैसा? - - उपर्युक्त शीर्षक के नीचे मैं फर्श पर बिछाये जाने वाले आसनो की बात नही कह रहा हूँ। यहाँ आसन से अभिप्राय बैठने के ढग से है। कुछ लोगो का बैठना वडा ही अव्यवस्थित होता है। वे जरासी देर भी स्थिर होकर नही बैठ सकते । अस्थिर आसन मन की दुर्बलता और चचलता का द्योतक है। भला, जो साधक दो घडी के लिए भी अपने शरीर पर नियत्रण नही कर सकता, वह अपने मन पर क्या खाक विजय प्राप्त करेगा? आसन, योग के आठ अगो मे से तीसरा अग माना गया है। इससे शरीर मे रक्त की शुद्धि होती है, रक्तशुद्धि से स्वास्थ्य ठीक रहता है और स्वास्थ्य ठीक होने से उच्च विचारो को बल मिलता है, मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। सिर नीचा झुकाये, पीठ को दुहरी किये, पैरो को फैलाये बैठे रहने वाला मनुष्य कभी भी महान् नहीं बन सकता। दृढ आसन का मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। शरीर की कडक मन मे कडक अवश्य लाती है अतएव सामायिक मे सिद्धासन अथवा पद्मासन आदि, किसी एक अपनी स्थिति के अनुकूल सुखद आसन से स्थिर हो कर बैठने का अभ्यास रखना चाहिए । मस्तिष्क का सम्बन्ध पीठ पर की रीढ की हड्डियो से है, अत पीठ के मेरुदण्ड को भी तना हुआ रखना आवश्यक है। १ यम नियमासनप्राणायामप्रत्याहारघारणाध्यानसमाधयोऽष्टावगानि । -पातजलयोगदर्शन २।२६
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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