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सामायिक प्रवचन
समय की नियमितता का मन पर बडा चमत्कारी प्रभाव होता है । उच्छङ्खल मन को यो ही अव्यवस्थित छोड देने से वह और भी अधिक उच्छ खल हो उठता है। रोगी को औषधि समय पर दी जाती है । अध्ययन के लिए विद्यामन्दिरो मे समय निश्चित होता है । विशिष्ट व्यक्ति अपने भोजन, शयन आदि का समय भी ठीक निश्चित रखते है । अधिक क्या, साधारण व्यसनो तक की नियमितता का भी मन पर बडा प्रभाव होता है । तमाखू आदि दुर्व्यसन करने वाले मनुष्य, नियत समय पर ही दुर्व्यसनो का सकल्प करते है। अफीम खाने वाले व्यक्ति को ठीक नियत समय पर अफीम की याद आ जाती है, और यदि उस समय न मिले, तो उसका चित्त चचल हो जाता है । इसी प्रकार सदाचार के कर्तव्य भी अपने लिए समय के नियम की अपेक्षा रखते हैं । साधक को समय का इतना अभ्यस्त हो जाना चाहिए कि वह नियत समय पर अन्य कार्य छोड कर सर्वप्रथम ग्रावश्यक धर्म - क्रिया करे | यह भी क्या धार्मिक जीवन है कि आज प्रात काल, तो कल दुपहर को परले दिन सायकाल, तो उससे अगले दिन किसी और ही समय । आजकल यह नियमितता बहुत ही बढ रही है । इससे न धर्म के समय धर्म ही होता है और न कर्म के समय कर्म ही ।
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प्रश्न किया जा सकता है कि फिर कौन-से काल का निश्चय करना चाहिए ? उत्तर मे कहना है कि सामायिक के लिए प्रात औौर सायकाल का समय बहुत ही सुन्दर है । प्रकृति के लीला क्षेत्र ससार मे वस्तुत इधर सूर्योदय का और उधर सूर्यास्त का समय, वडा ही सुरम्य एव मनोहर होता है । सभव है नगर की गलियों मे रहने वाले आप लोग दुर्भाग्य से प्रकृति के इस विलक्षण दृश्य के दर्शन से वचित हो, परन्तु यदि कभी आप को नदियो के सुरम्य तटो पर, पहाडो की ऊँची चोटियो पर, या बीहड वनो मे रहने का प्रसंग हुआ हो और वहाँ दोनो सन्ध्याओ के सुन्दर दृश्य आँखो की नजर पडे हो, तो मैं निश्चय से कहता हूँ कि आप उस समय ग्रानन्द-विभोर हुए बिना न रहे होगे । ऐसे प्रसगो पर किसी भी दर्शक का भावुक अन्त कररण उदात्त और गम्भीर विचारो से परिपूर्ण हुए विना नही रह सकता । लेखक