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साधु और श्रावक की सामायिक
जैन-धर्म के तत्वो का सूक्ष्म निरीक्षण करने पर यह बात सहज ही ध्यान मे ग्रा सकती है कि यहाँ साधु और श्रावको के लिए सर्वथा विभिन्न परस्पर विरोधी दो मार्ग नही है । आध्यात्मिक विकास की तरतमता के कारण दोनो की धर्म साधना मे अन्तर अवश्य रक्खा गया है, पर दोनो साधनाओ का लक्ष्य एक ही है, पृथक् नही ।
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अतएव सामायिक के सम्बन्ध मे भगवान् महावीर ने कहा है कि यह साधु और श्रावक दोनो के लिए आवश्यक है
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"गारसामाइए चेव अरणगार सामाइए चेव" - स्थानाग सूत्र, स्था० २, उ० ३
सामायिक, साधना क्षेत्र की प्रथम आवश्यक भूमिका है, अत इसके विना दोनो ही साधको की साधनाए पूर्ण नही हो सकती । परन्तु श्रात्मिकविकास की दृष्टि से दोनो की सामायिक मे अन्तर है । गृहस्थ की सामायिक अल्पकालिक होती है, और साधु की यावज्जीवन - जीवन - पर्यन्त के लिए ।
दोनो की सामायिकसाधना का स्वरूप समझने के लिए निम्न सूत्रो पर ध्यान देना आवश्यक है ।