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________________ सामायिक प्रवचन भी एक बहुत बडी साधना है । जो लोग सामायिक न करके व्यर्थ ही इधर-उधर निन्दा, चुगली, झूठ, हिंसा, लडाई प्रादि करते फिरते है, उनकी अपेक्षा निश्चय सामायिक का न सही, व्यवहार सामायिक का ही जीवन देखिए, कितना ऊँचा है, कितना महान् है ? स्थूल पापाचारो से तो जीवन बचा हुआ है ? ८० समाइग्रोवउत्तो जीवो सामाइय सय चेव । - विशेषा ० १५२६ सामायिक मे उपयोग युक्त ग्रात्मा स्वयं ही सामायिक है । चित्तस्य हि प्रसादेन हन्ति कर्म शुभाशुभम् । प्रसन्नात्माऽऽत्मनि स्थित्वा सुखमव्ययमश्नुते ॥ -- मैत्रा० श्रारण्यक ६१३४-४ चित्त के प्रसन्न (निर्मल) एव शात हो जाने पर शुभाशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं । और प्रसन्न एव शातचित्त मनुष्य ही जव आत्मा में लीन होता है तब वह अविनाशी प्रानन्द प्राप्त करता है ।
SR No.010073
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1969
Total Pages343
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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