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________________ २०० स्वयंभू स्तोत्र टीका दोनों भ्राता प्रभु भक्ति मुदित, वृषविनय रसिक जननाथ उदित। सहबधु नेमि जिन सभा गए. युग चरणकमल वह नमत भए ॥ १२५-१२६ ।। उत्थानिका-जिस पर्वत पर भी जाकर कृष्ण बलदेव ने नेमिनाथ के चरणों को नमस्कार किया उस पर्वत का वर्णन करते हैं ककुदं भुवः खचरयोषिदुषितशिखरैरलंकृतः । मेघपटलपरिवीततटस्तव लक्षणानि लिखितानि वजिरणा ॥ १२७ ॥ वहतीति तीर्थमृषिभिश्च सततमभिगम्यतेऽद्य च । प्रोतिविततहृदयैः परितो भृशमूर्जयन्त इति विश्रुतोऽचलः ॥१२८॥ अन्वयार्थ-[ ऊर्जयंत इति अचलः ] ऊर्जयंत या गिरनार नाम का पर्वत आपके मोक्ष होने के कारण [ भृशं निश्रुतः ] अतिशय करके लोक में प्रसिद्ध होगया। वह पर्वत कैसा है [ भुवः ककुदं ] जैसे बैल के कंधे का अग्र भाग शोभता है वैसे यह पर्वत पृथ्वी का उच्च अग्रभाग रूप शोभता है [ खचरयोषित् उषितशिखरैः अलंकृतः ] विद्याघरों को स्त्रियों से सेवित शिखरों से यह पर्वत शोभायमान है [ मेघपटलपरिवीततटः ] जिस पर्वत के किनारों को मेघों ने छा लिया है [ ज्रिणा तव लक्षणानि लिखितानि वहति इति तीर्थं ] इन्द्र ने आपके मोक्ष स्थल पर जो चिह्न उकेरे उनको रखने वाला है इससे यह तीर्थ है [ प्रोतिविततहृदयः ] अापकी तरफ प्रीति दिल में रखने वाले ऐसे [ ऋषिभिः ] साधुओं के द्वारा [ अद्य च ] आज भी ( परितः ) सर्व तरफ से ( सतत अभिगम्यते । निरन्तर सेवन किया जाता है,ऐसा यह गिरनार पर्वत जगत में तीर्थ माना गया है। भावार्थ-यहां यह दिखलाया है कि श्री अर्जयन्त या गिरनार पर्वत श्री नेमिनाथ का मोक्ष स्थल होने से जगत में तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है । वहां इन्द्र ने चरण के चिह्न उकेरे हैं उन चिन्हों को धारण करता है, वह पर्वत बड़ा ऊंचा है जिसके तटों पर मेघ घिरे रहते हैं। बड़े २ साधु बड़ी भक्ति से आज भी पर्वत की यात्रा करते हैं। विद्याधरों की स्त्रियां भी पूजने को प्राती हैं और पर्वत के शिखरों की सेवा करती हुई बड़ो शोभा विस्तारती हैं। इन श्लोकों से यह बात स्वामी ने झलका दो है कि जहां से तीर्थङ्करादि सिद्ध होते हैं उस जगह पर इन्द्र पाता है और निर्वाण कल्याणक की पूजा करके वहां चिह्न
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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