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श्री नेमिनाथ जिन स्तुति
छन्द त्रोटक
तुम पाद कमल युग निर्मल हैं, पदतल द्वय रक्त कमल दल हैं । नख चन्द्र किरण मण्डल छाया, प्रति सुन्दर शिखरांगुनि भाया ॥ इन्द्रादि मुकुटमणि किरण फिरै, तव चरण चूमकर पुण्य भरं । निज हितकारी पण्डित मनिगण, मन्त्रोच्चारी प्रण मैं भविगण | उत्थानिका -- आपके चरणों को अन्य भी नमन करते हैं ऐसा कहते हैं-द्युतिमद्रयांगर विविम्बकि रणजटिलांशुमण्डलः । नीलजलदजलराशिवपुः सह बन्धुभिर्गरुडकेतुरीश्वरः ।। १२५ ।। हलभृच्च ते स्वजनभक्तिमुदितहृदयौ जनेश्वरौ । धर्मविनयरसिकौ सुतरां चरणारविन्दयुगलं प्रणेमतुः ।। १२६ ।
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अन्वयार्थ -- (-- गरुड़केतुः ) गरुड़ की ध्वजा रखने वाले ( ईश्वरः ) नारायण श्री कृष्ण महाराज तीन खण्ड के धनी ( द्युतिमद्रथांगर विविम्व किरणजटिलांशुमण्डल: । जिनका शरीर-मण्डल कांतिमई सूर्य के बिम्व के समान उनके रथ के पहिये की किरणों से छाया हुआ है (नीलजलदजलराशिवपुः ) व जिनका शरीर नील मेघ के समान समुद्रवत् नील रंग का है । हलभृत् च ) वे और बलदेव ( ते जनेश्वरी ) ये दोनों महाराज प्रजा के स्वामी ( स्वजनभक्तिमुदितहृदयौ ) अपने ही कुटुम्बी श्री नेमिनाथ को भक्ति से जिनका मन हर्षित हो रहा है ( धर्मविनय रसिकौ । व जो धर्म की विनय के प्रेमी हैं इन दोनों महा पुरुषों ने
सहवधुभि.) अन्य बन्धुनों के साथ श्री नेमिनाथ के समवसरण में जाकर (चरणारविंदयुगलं ) उनके दोनों चरणकमलों को [ सुतरां प्रगेमतुः ] खूब ही भावों से नमन किया ।
भावार्थ - - यहां यह बताया है कि श्री नेमिनाथ भगवान के भतीजे श्रीकृष्ण नारारण व उनके बड़े भाई बलदेव उस समय प्रजा के स्वामी प्रसिद्ध नरनाथ थे। ये भी जिन भक्त थे । ये दोनों भाई अन्य बन्धुओं के साथ जाते हैं और समवसरण में श्री नेमिनाथ भगवान के चरण कमलों को बड़े भाव से नमन करते हैं ।
छन्द त्रोटक
तिमय रविसम रथचक्र किरण, करती व्यापक जिस प्रांग घरन । है नील जलद सम तब नील, है केतु गरुड़ जिस कृष्ण हलं ॥