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वृ० स्वयंभूस्तोत्र टीका ।
भावार्थ -- यहां यह दिखलाया है कि जीवों के अंतरंग परिणाम ही पुण्य तथा पाप बंध के मुख्य या मूल कारण हैं । तथा बाहरी पदार्थ शुभ व अशुभ परिणामों के होने में मात्र सहकारी काररण हैं। बंध तो भावों से ही होगा । गृहस्थों का मन प्रति चंचल होता है । इसलिये उनके मन को अन्य बाहरी कार्यों से रोकने के लिये यह प्रावश्यक है कि बाहरी पदार्थों का प्रालम्बन हो । निमित्त बड़ा बलवान होता है। जहां जैसा बाहरी निमित्त होता है वैसा परिणाम हो जाता है तथा एक कार्य के लिये अनेक निमित्तों की श्रावश्यकता होती है । गृहस्थ के मन में भक्ति उत्पन्न करने के लिये जिन मन्दिर का स्थान, ध्यान मई प्रतिमा, व जल चंदनादि आठ द्रव्य, पूजा के उपकरण व गाने बजाने का सामान इत्यादि वे सर्व पदार्थ सहकारी कारण हैं. इनके होते हुए यदि पूजा करने वाला उपयोग को लगावे तो भक्ति के भाव जागृत कर सकता है व बढ़ा सकता है । और महान पुण्य का लाभ कर सकता है परन्तु जिसका उपयोग ही पूजा की तरफ नहीं है उसके लिये बाहरी पदार्थ मात्र पुण्य बंध का कारण न होगा । जिसके चित्त में यह झुकाव है कि मैं अपने भावों को उज्ज्वल करू, उसके भावों को चढाने के लिये जल चन्दनादि द्रव्य बड़े उपयोगी सहकारी पड़ते हैं । इनके निमित्त से भिन्न २ भावनाओं को भाता हुआ गृहस्थ पूजा करके भावों की निर्मलता प्राप्त कर सकता है । जब वह जलादि चढ़ाता है तब यह भावना करता है कि जन्म जरा मरण रोग के निवारण हेतु जल चढ़ाता हूं, भव के प्रताप को दूर करने के लिये चन्दन चढ़ाता हूं । प्रक्षय गुणों की प्राप्ति के लिये ग्रक्षत चढ़ाता हूं इत्यादि । पूजा करने के प्रारम्भ में जो भाव में भक्ति भाव थोड़ा होता है वह सामग्री चढ़ाकर च ढेर बढ़ जाता है । यद्यपि परिणामों के पलटने के लिये व बाहरी वस्तु निमित्त कारण है तथापि ग्रापका दर्शन तो यही है कि प्रधान हेतु अंतरंग
तक पूजा में जुड़ जाने से बहुत मावों को विशुद्ध करने के लिये
कारण है। इसलिये मुनियों को जल चन्दनादि सामग्री के बिना भी यह शक्ति है कि वे प्रापकी भक्ति कर सकें। क्योंकि उनका मन ग्रन्य कार्य में - धनादि व परिग्रहादि की चिन्ता में नहीं रहता है । वे तो निरन्तर ध्यानाशक्त हैं । उनके लिये तो एकान्तवास, परिग्रह त्याग व तीव्र वैराग्य का सामान यही सब बाहरी निमित्त हैं जिनसे उनका परि शाम श्री जिनेन्द्र की भक्ति में तल्लीन हो जाता है । उनके लिये द्रव्य पूजा की जरूरत नहीं है परन्तु गृहस्थों को इसलिये जरूरत है कि उनके लिये अनेक उल्ले पाप रूप ग्रा पर हैं जिनसे बचने के लिये बाहरी सामग्री प्रादि का निमित्त भावों के बढ़ाने में प्रबन
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