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श्री पुष्पदन्त जिन स्तुति
का अभाव है अथात् जीव द्रव्य में अजीव का द्रव्य, अजीव का क्षेत्र, अजीव की पर्याय, __ अजीव का स्वरूप नहीं है । इस तरह जीव का अभाव अजीव में, अजीव का अभाव जीव में यथा जीव का भाव जीव में व अजीव का भाव अजीव में मानने से ही जीव प्रजीव दोनों पदार्थ सिद्ध होते हैं । इसलिये स्याद्वाद वाणी कहती है कि स्यात् जीवः अस्ति अर्थात किसी अपेक्षा से अर्थात् अपने द्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा जीव में अस्तिपना या जीव का . जीवपना है तथा स्यात् नास्ति जीवः अर्थात् किसी अपेक्षा से अर्थात् अजीव की अपेक्षा से जीव में नास्तिपना है अर्थात् अजीव जीव में नहीं है । ऐसा ही वस्तु का यथार्थ स्वभाव है।
अब कहते हैं कि अस्तित्व स्वभाव का जीव के साथ सर्वथा भेद मानोगे, अर्थात् अस्तित्व से भिन्न जीव है, तो यह दोष पायगा कि सत्ता के बिना जीव है, यह प्रतीति भी कैसी होगी। तथा सच्चा स्वभाव बिना द्रव्य के प्राधार के कहां रह सकेगा? अर्थात् ऐसा मानने से जीव का व सत्ता का दोनों का ही प्रभाव हो जायगा । सत्ता और जीव द्रव्य में संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजन को अपेक्षा भेद है। परन्तु प्रदेश की अपेक्षा भेद नहीं है। इस. • लिए सत्ता का कथंचित् भेद कथंचित् अभेद मानना ही ठीक होगा। यदि नास्तित्व धर्म
जीव द्रव्य से सर्वथा भेद माने तो नास्तित्व धर्म छूट जाने से उस जीव में अजीव का अभाव ___ नहीं सिद्ध होगा तब जीव अजीव एक हो जायेंगे। तथा विना आधार के नास्तित्व धर्म भी नहीं रह सकेगा।
अब यदि यह माने कि अस्तित्व धर्म का जीव के साथ सर्वथा अभेद है । तब स्वभाव व स्वभाववान बिलकुल एक होने से स्वभाव या स्वभाववान का भेद कहा ही न जा सकेगा। इसी तरह यदि नास्तित्व धर्म भी जीव के साथ एक हो जायगा तब भी नास्तित्व स्वभाव का और जीव का भेद नहीं कहा जायगा तथा जब अपेक्षा विना दोनों स्वभाव वस्तु में रह जायेंगे तब अस्तित्व में नास्तित्व पाने से कुछ भी वस्तु न रहेगी। वस्तु को शून्यता हो जाएगी। जैसे हमने एक बाक्स में १०) रक्खे फिर १०) निकाल दिये तब वहां कुछ भी न रहा । न तो अस्तित्व नास्तित्व से कभी एक हो सकते हैं क्योंकि दो भिन्न २ स्वभाव हैं और न पदार्थ से अस्तित्व व नास्तित्व सर्वथा एक हो सकते हैं ।
वस्तु स्वरूप यही मानना पड़ेगा कि जीवादि द्रब्यों में कथंचित् अस्तित्व है व कथंचित ... नास्तित्व है । स्व-स्वरूप को अपेक्षा अस्तित्व है पर-स्वरूप को अपेक्षा नास्तित्व है, दोनों
ही धर्म भिन्न २ अपेक्षा से हैं, ये दोनों धर्म धर्मी में हैं, प्रदेशपने की अपेक्षा से जहां धर्मों है ... बहा हो यह दोनों धर्म हैं परन्तु नाम व लक्षणादि की अपेक्षा से धर्म व धर्मी में भेद है।
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