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________________ automi c Cabecarsha. rime ७० स्वयंभू स्तोत्र टीका भावार्थ-भवितव्यता, विधाता, काल, नियति, पूर्वकृत कर्म, वेधा, विधिस्वभाव, भाग्य, दैव ये सब शब्द एकार्थवाची हैं । यह मानव निर्मल बुद्धिसे रात दिन किसी अन्य ही कार्यकी चिता किया करता है परन्तु कर्मोका उदय कुछ अन्य ही प्रागे लादेता है, नहीं समर्थ कोई है जो इसे रोक सके । इस लोकमें न तो चक्रवर्ती, न इन्द्र, न विद्याधर कोई में भी यह शक्ति नहीं है कि जो तीव्र कर्मोंके उदयको रोक सके । जैसे सूर्यका उदय व अस्त अपने आधीन नहीं है वैसे कर्मोंका उदय या नाश अपनी चाहना पर नहीं है। - एक धर्म पुरुषार्थ तो अवश्य मन्द कर्मोंका क्षय कर सकता है य पुण्यका लाभ करा सकता है, विना धर्मके तो कोई भी देवके आक्रमणसे बचानेवाला नहीं है। इसलिये पुरुषार्थका एकांत मत मिथ्या है, ऐसा समझना ही संतोषका कारण है । छन्द चौपाई। डरत मृत्य से तदपि टलत ना, नित हित चाहे तदपि लभत ना। तदपि मूढ़ भय वश हो कामी, वृथा जलत हिय हो न शकामी ॥४॥ उस्थानिका-जिसके उपदेशमें त्यागने योग्य व ग्रहण करने योग्य तत्त्वोंका यथार्थ कथन है वही प्रमाणीक होता है। क्या श्री सुपार्श्वनाथ भगवान् ! आपका वचन ऐसा ही है ? इस शंकाका समाधान करते हुए कहते हैं-- सर्वस्य तत्त्वस्य भवान्प्रमाता, भातेव बालस्य हितानुशास्ता। गुणावलोकस्य जनस्य नेता, मयापि भक्त्या परिणूयतेऽद्य ॥३५॥ अन्वयार्थ--(भवान् ) है सुपार्श्वनाथ भगवान् ! श्राप ही ( सर्वस्य तत्त्वस्य ) सर्व ही त्यागने लायक व ग्रहण करने लायक तत्त्वोंके ( प्रमाता) संशयादि दोपस रहित ज्ञाता हैं व ( माता नालस्य इव हितानुशास्ता ) जैसे नाता बालकको हितकारी शिक्षा देती है उसी तरह आप भव्यजीवोंको जो अज्ञानी हैं, हितकारी तत्त्वको शिक्षा देते हैं ( गुणावलोकस्य जनस्य नेता ) ब आप ही सम्यग्दर्शनाति गणोंके खोजी भव्यजीवका यथार्थ मार्गको दिखानेवाले हैं। इसीलिये ( अद्य ) प्राज ( मया अपि ) मेरेसे भी ( भक्त्या परिणूयते ) पाप भक्तिपूर्वक स्तुति किये गए हैं। भावार्थ-इस श्लोकमें दिखाया है कि है सुपार्श्वनाथ भगवान ! मैं श्राज प्रापका भक्ति से प्रेरित हो जो स्तुति कर रहा हूँ उसमें कारण यही है कि श्राप हो स्तुति करने
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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