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श्री अजितनाथ स्तुति
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परम उपकारी है । उनके नाम लेने से उनके सर्व आत्मीक गुरण बुद्धि के सामने उपस्थित हो जाते हैं । उनका प्रमोघ शासन स्मरण में आता है । उनको वस्तु का यथार्थ कथन ध्यान में श्रा जाता है । उनका उपदेश एकांत मत का निराकरण करने वाला है व नेकांत मतका स्थापन करने वाला है जैसा कि वस्तुका स्वरूप है व जिसको स्वयं प्राचार्य इसी स्तोत्र में श्रागे दिखलायेंगे । तथा जिन्हों के उपदेश से अनेकों को मोक्षका मार्ग मिला व जो उपदेश अब भी सुनने वालों को मोक्षमार्ग पर प्रेरित करता है ऐसे प्रभु का नाम स्मरण परम कल्याणकारी है, श्रात्मानुभवकी तरफ झुकाने वाला है, हरएक नाम वाले पुरुष का बोध कराता है । नाम रखने का प्रयोजन ही यह है कि जिसका नाम है उसके स्वरूप का ज्ञान नाम लेते ही स्मरण में प्राजावे । एक नाम तो ऐसा होता है जो मात्र नाम ही होता है, जैसा नाम वैसा अर्थ उसमें नहीं होता है जिसका नाम रखा जाता है । जैसे किसी मानव का नाम इन्द्रचन्द्र रक्खा जाय तो भी यह नाम उसका तो श्रवश्य बोध कराता है जिसका इन्द्रचन्द्र नाम है । दूसरा नाम ऐसा भी होता है जो उस गुरगका वाचकहो, जो उसमें हो, जिसका नाम रक्खा जावे। श्री प्रजितनाथ भगवान का नाम ऐसा ही है । पवित्र जो श्रात्माएं हैं उनके नाम स्मरण से स्मरण करनेवाले का भाव पवित्र हो जाता है, जिससे पापों का नाश होता है, अंतराय कर्म का बल घटता है तथा जितना अंश उस पवित्र भाव में शुभराग हो जाता है उतना अंश पुण्यकर्म का बंध भी होता है । इसीलिये मंगल के लिये पूज्य पुरुषों का नाम लेना हितकर समझा जाता है । व्यवहार में प्रवर्तते हुए मुनिगरण भी जब किसी शास्त्रका व धर्मोपदेश का व ग्रंथ सम्पादन का काम प्रारंभ करते हैं तो परमात्मा का नाम व गुरण स्मरण रूप मंगलाचरण करते हैं । मंगल शका अर्थ है कि जो मं श्रर्थात् पाप उसको गल-गलावे सो मंगल है । तथा मंग प्रर्थात् सुखको लाति उत्पन्न करावे सो मंगल है। पूज्य पुरुषों के गुणों की तरफ उपयोग जाने से ही पाप गलता है, पुण्य बंधता है । इसीलिये प्रारंभिक कार्य में होने वाले विघ्नों के टालने में यह मंगलाचरण निमित्त कारण हो जाता है । गृहस्य भी किसी भी धर्म कार्यको करते हुए मंगलाचरण करते हैं । लौकिक कार्यों के सम्पादन में मी गृहस्थ परमात्मा का नाम स्मरण करते रहते हैं । वह भी इसीलिये कि उस कार्य के होने में जो बाधक कोई अंतराय कर्म हो यह टल जावे । उसका बल घट जावे ।
( जब यह सिद्धांत है कि पूज्य पुरुषोंकी भक्ति पाप गलाती है, पुण्य लाती है तव उसका उपयोग मात्र इस भावसे करना कि पाप हटे, पुण्य प्रगटे सम्यक्त्व में बाधक नहीं है)