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________________ श्री आदिनाथ स्तुति । है. जो सामायिक भाव में रंग रहा है, जो सर्व प्राणियों पर दयावान है,,जो हितमित वचनों । । को कहने वाला है, जिसने निद्रा को जीत लिया है व जिसके प्राध्यात्मिक तत्त्व का पूर्ण । निश्चय है वही साधु सर्व क्लेशों को जला डालता है। गीता छन्द-- । इन्द्रियजयी, इक्ष्वाकुवंशी मोक्ष की इच्छा करें । सो सहनशोल सुगाढ़ व्रत में साधु संयम को धरें ।।। निज भूमि महिला त्यागदी जो थी सती नारो समा। यह सिंधु जल है वस्त्र जिसका पोर छोड़ो सर रमा । उत्थानिका-भगवान ने दीक्षा लेकर क्या किया• स्वदोषमूलं स्वसमाधितेजसा,निनाय यो निर्दयभस्मसाक्रियाम् । जगाद तत्त्वं जगतेथिनेजसा, बभूव च ब्रह्मपदाऽमृतेश्वरः ॥४॥ ____ अन्वयार्थ-(यः) जिस प्रादिनाथ ऋषि ने ( स्वदोषमूलं ) अपने प्रात्मा सम्बन्धी । । प्रज्ञान और रागादि दोषों के मूल कारण चार घातिया कर्मों को ( स्वसमाधितेजसा ) अपनी श्रात्म-समाधि की अग्नि से अर्थात् शुक्लध्यान के प्रभाव से ( निर्दयभस्मसात्कियां । निनाय ) निर्दयी होकर भस्मपने को प्राप्त कर दिया व ( अथिने जगते ) तत्त्वज्ञान के अभिलाषी जगत के प्राणियों के लिये (जसा) परमार्थ रूप से यथार्थ (तत्त्वं) जीवादि के स्वरूप को (जगाद) वर्णन किया (च) फिर वे (ब्रह्मपदाऽमृतेश्वरः बभूव) मोक्षपन के अनन्त सुख के स्वामी होगए, अर्थात् सिद्ध परमात्मा होगए। . भावार्थ-इस श्लोक में प्राचार्य ने तप, ज्ञान और निर्वाण तीनों प्रवस्था को स्मरण कर लिया है। श्री ऋषभदेव ने साधु होकर दिन रात यात्मानुभव रूपी अग्नि जलाने का पुरुषार्थ किया । उसी के बल से धर्म ध्यान की पूर्णता की, फिर शुक्लध्यान को प्रगटाया। इसी शुक्लध्यान के बल से सबसे पहले सर्व कर्मों के शिरोमरिण मोहनीय कर्म का नाश किया, जिससे परम वीतराग भाव को क्षायिक सम्यक्त्व सहित प्राप्त किया। फिर अन्तमुहूर्त ठहरकर बारहवें गुणस्थान में शेष तीन घातिया फर्मों का भी नाश किया । ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्म के नाश से अज्ञानतम मिटा व केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया। अन्तराय के नाश से अनन्त बल को प्राप्त किया। प्रात्मा में अनादिकाल से राग-द्वप, मोह का, अज्ञान का व निर्वलता का दोष था, सो सब जाडमल से नष्ट होगया । अब प्रभु केवलज्ञानी अर्हत परमात्मा होगए। इस तीर्थङ्कर अवस्था में स्वामी ऋषमदेव बहुत काल रहे। और यत्र तत्र विहार कर मोक्ष-तत्त्व के अभिलापियों को दिव्य-ध्वनि
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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