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स्वयंभू स्तोत्र टीका द्वारा परमार्थ का उपदेश दिया । दीर्घकाल तक श्री ऋषभदेव का समवसरण विहार कर धर्मोपदेश सुनाता रहा जिससे अनेक जीवों ने धर्म का लाभ उठाया। प्रायु के अन्त के निकट श्रायु, नाम, गोत्र, वेदनीय इन चार अधातिया कर्मों को नाशकर वे परम सिद्ध होगए । कैलाश पर्वत से मोक्ष हुए,उसी की सीध पर जाकर तीन लोक के अग्रभाग में ठहर गए-अविनाशी प्रानन्दरूपी अमृत का निरन्तर पान करने वाले परमेश्वर होगए । यहां यह बताया है कि प्रात्मा को निर्विकल्प समाधि या स्वानुभवरूप साधन से ही यह प्रात्मा निर्दोष पवित्र व वीतरागी होता है। परमात्मा होने का निश्चल आत्मध्यान ही एक उपाय है, और कोई उपाय नहीं है, न कभी था न होगा । आत्मा के शुद्ध स्वरूप के ज्ञान में भिरता पाना ही आत्मध्यान है। श्री समयसार कलश में स्वामी अमृतचन्दजी कहते हैं- ये ज्ञानमात्रनिजभावमयीमगम्यां । भूमि अयन्ति कथमप्यवनीतमोहाः ।। .. ते साधकत्त्वमधिगम्य भवन्ति सिद्धाः । मूढास्त्वमूमनुपलभ्य परिभ्रमन्ति ।।२०/१०
भावार्थ-जो जिस तरह हो सके मोह भाव को हटाकर ज्ञान मात्र अपनी ही निश्चल आत्मभूमि का प्राश्रय लेते हैं अर्थात् अपने ही ज्ञानदर्शन स्वभाव में विश्रांति पाते हैं, वे ही मोक्ष के साधन को पाकर सिद्ध हो जाते हैं । जो मूढ़ अज्ञानी हैं वे इस भूमि को न पाकर भ्रमण किया करते हैं। . .
संस्कृत टीकाकार ने कहा है कि सर्वज्ञ वीतराग का ही कथन सत्य हो सकता है । तथा अरहन्त अवस्था में परमात्मा को भूख प्यास प्रादि की बिलकुल पीड़ा नहीं होती। जिसको ऐसी कोई पीडा हो वह कदाचित कुछ का कुछ भी कह सके, सो अरहन्त परमात्मा के भूख प्यास को बाधा बिलकुल सम्भव नहीं है । न उनको किसी तरह ग्रास रूप भोजन करने की प्रावश्यकता है। वे निरन्तर अात्मस्थ रहते हैं, अनन्त वीर्यवान होते हुए कर्म की निर्बलता नहीं मालूम करते हैं । अनन्त सुखी होने से निरन्तर प्रानन्द का स्वाद लेते हैं। उनको न क्षुधादि का,न उसके मेटने का कोई कष्ट है, न विकल्प है, न प्रयत्न है । योगबल से उनका शरीर स्वयं ग्रहरण होने वाली प्राहारक वर्गणानों के द्वारा सदा पुष्ट रहता है। उनकी प्रवृत्ति साधारण साधु के समान नहीं होती है। वे एक अलौकिक महापुरुष हो गये हैं ।
गीता छन्द निज घ्यान प्रग्नि प्रभाव से रागादि भूलक फर्म को । करुणा विगर हैं भस्म कीने चार घाती कर्म को। अरहंत हो जग प्राणिहित सत् तत्त्व का वर्णन किया। फिर सिद्ध हो निज ब्रह्मपद अमृतमई सुख नित पिया ।।