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परमात्मप्रकाश
केवलदर्शनं ज्ञानं सुखं वीर्यं य एव अनन्तम् ।
स जिनदेवोऽपि परममुनिः परमप्रकाशं जानन् ।।१६६।।
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फिर भी इसी कथनको दृढ़ करते हैं - (केवलदर्शनं ज्ञानं सुखं वीर्यं) केवलदर्शन, केवलज्ञान, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य (यदेव अनंतं) ये अनन्तचतुष्टय जिसके हों ( स जिनदेव :) ही जिनदेव है, (परममुनिः ) वही परममुनि अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञानी है । क्या करता संता । (परमप्रकाशं जानन् ) उत्कृष्ट लोकालोकका प्रकाशक जो केवलज्ञान वही जिसके परमप्रकाश है, उससे सकल द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भावको जाना हुआ परमप्रकाशक है । ये केवलज्ञानादि अनन्तचतुष्टय एक ही समय में अनन्तद्रव्य, अनन्त - क्षेत्र, अनन्तकाल और अनन्तभावोंको जानते हैं, इसलिये अनन्त हैं, अविनश्वर हैं, इनका अन्त नहीं है, ऐसा जानना ||१६||
अथ
जो परमप्पउ परम-पउ हरि हरु बंभु विबुद्धु ।
परम पयासु भांति मुणि सो जिण देउ विसु ॥ २००॥ यः परमात्मा परमपद: हरिः हरः ब्रह्मापि बुद्धः ।
परमप्रकाश भणन्ति मुनयः स जिनदेवो विशुद्धः ॥ २०० ॥
आगे जिनदेव के ही अनेक नाम हैं, ऐसा निश्चय करते हैं - (यः) जिस ( पर - मात्मा परमात्माको (मुनयः ) मुनि (परमपदः) परमपद (हरि: हरः ब्रह्मा अपि ) हरि महादेव ब्रह्मा (बुद्धः परमप्रकाशः भणति ) बुद्ध और परमप्रकाश नामसे कहते हैं, ( स ) वह ( विशुद्धः जिनदेवः ) रागादि रहित शुद्ध जिनदेव ही है, उसीके ये सब नाम हैं ।
भावार्थ - प्रत्यक्षज्ञानी उसे परमानन्द ज्ञानादि गुणोंका आधार होने से परमपद कहते हैं । वही विष्णु है, वही महादेव है, उसीका नाम परब्रह्म है, सबका ज्ञायक होने से बुद्ध है, सबमें व्यापक ऐसा जिनदेव देवाधिदेव परमात्मा अनेक नामोंसे गाया जाता है । समस्त रागादिक दोषके न होनेसे निर्मल है, ऐसा जो अरहन्तदेव वही परमात्म परमपद, वही विष्णु, वही ईश्वर, वही ब्रह्म, वही शिव, वही सुगत, वही जिनेश्वर, और वही विशुद्ध - इत्यादि एक हजार आठ नामोंसे गाया जाता है । नाना रुचिके धारक ये ससारी जीव वे नाना प्रकारके नामोंसे जिनराजको आरावते हैं ● से