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परमात्मप्रकाश
अर्थात् अपने आप परिणमते हुए द्रव्योंको कुम्हारके चक्रकी नीचेकी सिलाकी तरह जो वहिरंग सहकारीकारण है, यह कालद्रव्य असंख्यात प्रदेशप्रमाण है ( यथा) जैसे ( रत्नानां राशिः ) रत्नों की राशि ( विभिन्नः) जुदारूप है, सब रत्न जुदा-जुदा रहते हैं — मिलते नहीं हैं, (तथा) उसी तरह ( तस्य ) उस कालके ( अणूनां ) कालकी अणुओंका ( भेदः ) भेद है, एक काला से दूसरा कालागु नहीं मिलता। यहां पर शिष्यने प्रश्न किया कि समय ही निश्चयकाल है, अन्य निश्चयकाल नामवाला द्रव्य नहीं है ? इसका समाधान श्रीगुरु करते हैं ।
समय वह कालद्रव्यकी पर्याय है, क्योंकि विनाशको पाता है । ऐसा ही श्रीपंचास्तिकाय में कहा है “समओ उप्पण्णपद्ध सी” अर्थात् समय उत्पन्न होता है और नाश होता है । इससे जानते हैं कि समय पर्याय द्रव्यके बिना हो नहीं सकता । किस द्रव्यका पर्याय है, इस पर अब विचार करना चाहिये । यदि पुद्गलद्रव्यकी पर्याय मानी जावे, तो जैसे पुद्गल परमाणुओं से उत्पन्न हुए घटादि मूर्तीक हैं, वैसे समय भी मूर्तीक होना चाहिये, परन्तु समय अमूर्तीक है, इसलिये पुदुगलकी पर्याय तो नहीं है । पुद्गलपरमाणु आकाश के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेशको जब गमन होता है, सो समयपर्याय कालकी है, पुद्गलपरमाणु के निमित्तसे होते हैं, नेत्रोंका मिलना तथा विघटना उससे निमेष होता है, जल-पात्र तथा हस्तादिकके व्यापारसे घटिका होती है, और सूर्यबिम्बके उदयसे दिन होता है, इत्यादि कालकी पर्याय हैं, पुद्गलद्रव्य के निमित्तसे होती हैं, पुद्गल इन पर्यायोंका मूलकारण नहीं है, मूलकारण काल है । जो पुदुगल मूलकारण होता तो समयादिक मूर्तीक होते ।
जैसे मूर्तीक मिट्टी के ढेलेसे उत्पन्न घड़े वगैरः मूर्तीक होते हैं, वैसे समयादिक मूर्तीक नहीं हैं । इसलिये अमूर्तद्रव्य जो काल उसकी पर्याय हैं, द्रव्य नहीं हैं, कालद्रव्य अगुरूप अमूर्तीक अविनश्वर है, और समयादिक पर्याय अमूर्तीक हैं, परन्तु विनश्वर हैं, अविनश्वरपना द्रव्यमें ही है, पर्यायमें नहीं है, यह निश्चयसे जानना । इसलिये समयादिकको कालद्रव्यकी पर्याय ही कहना चाहिये, पुदुगलकी पर्याय नहीं हैं, पुद्गल पर्याय मूर्तीक है । सर्वथा उपादेय शुद्ध बुद्ध केवलस्वभाव जो जीव उससे भिन्न कालद्रव्य है, इसलिये हेय है, यह सारांश हुआ || २१ ॥
जीवपुद्गल कालद्रव्याणि मुक्त्वा शेषधर्माधर्माकाशान्येकद्रव्याणीति निरूपयति