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परमात्मप्रकाश
[ ११७ .. भावार्थ-हे जीव, तू तत्त्वार्थका श्रद्धान, शास्त्रका ज्ञान, और अशुभ क्रियाओं का त्यागरूप सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्र व्यवहारमोक्ष-मार्गको जान, क्योंकि ये निश्चयरत्नत्रयरूप निश्चयमोक्ष-मार्गके साधक हैं, इनके जाननेसे किसी समय परम पवित्र, परमात्मा हो जायगा। पहले व्यवहाररत्नत्रयकी प्राप्ति हो जावे, तब ही निश्चयरत्नत्रयकी प्राप्ति हो सकती है, इसमें सन्देह नहीं है। जो अनन्त सिद्ध हुए और होवेंगे वे पहले व्यवहाररत्नत्रयको पाकर निश्चयरत्नत्रयरूप हुए। व्यवहार साधन है, और निश्चय साध्य है । व्यवहार और निश्चय मोक्ष-मार्गका स्वरूप कहते हैं-वीतराग सर्वज्ञदेवके कहे हुए छह द्रव्य, सात तत्त्व, नौ पदार्थ, पंचास्तिकाय, इनका श्रद्धान, इनके स्वरूपका ज्ञान, और शुभ क्रियाका आचरण, यह व्यवहारमोक्ष-मार्ग है, और निज शुद्धात्माका सम्यक् श्रद्धान स्वरूपका ज्ञान, और स्वरूपका आचरण यह निश्चयमोक्ष-मार्ग है । साधनके बिना सिद्धि नहीं होती, इसलिये व्यवहारके बिना निश्चयको प्राप्ति नहीं होती।
यह कथन सुनकर शिष्यने प्रश्न किया कि हे प्रभो; निश्चयमोक्ष-मार्ग जो निश्चयरत्नत्रय वह तो निर्विकल्प है, और व्यवहाररत्नत्रय विकल्प सहित है, सो यह विकल्प-दशा निर्विकल्पपनेकी साधन कैसे हो सकती है ? इस कारण उसको साधक मत कहो । अब इसका समाधान करते हैं। जो अनादिकालका यह जीव विषय कषायोंसे मलीन हो रहा है, सो व्यवहार-साधनके बिना उज्ज्वल नहीं हो सकता, जब मिथ्यात्व अव्रत कषायादिककी क्षीणतासे देव. गुरु, धर्मको श्रद्धा करे, तत्त्वोंका जानपना होवे, अशुभ क्रिया मिट जावे, तव गुरू वह अध्यात्मका अधिकारी हो सकता है । जैसे मलिन कपड़ा धोनेसे रंगने योग्य होता है, बिना धोये रंग नहीं लगता, इसलिये परम्पराय मोक्षका कारण व्यवहाररत्नत्रय कहा है । मोक्षका मार्ग दो प्रकारका है, एक व्यवहार, दूसरा निश्चय, निश्चय तो साक्षात् मोक्ष-मार्ग है, और व्यवहार परम्पराय है । अथवा सविकल्प निर्विकल्पके भेदसे निश्चयमोक्षमार्ग भी दो प्रकारका है ।
जो मैं अनंतज्ञानरूप हूँ, शुद्ध हूँ, एक हूँ, ऐसा "सोऽहं" का चितवन है, वह तो सविकल्प निश्चय-मोक्ष-मार्ग है, उसको साधक कहते हैं, और जहांपर कुछ चितवन नहीं है, कुछ बोलना नहीं है, और कुछ चेष्टा नहीं है, वह निर्विकल्पसमाधिरूप साध्य है, यह तात्पर्य हुआ। इसी कथनके बारेमें द्रव्यसंग्रहकी साक्ष देते हैं । "मा चिट्ठह" इत्यादि । सारांश यह है, कि हे जीव; तू कुछ भी कायकी चेष्टा मत कर, कुछ बोल