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परमात्मप्रकाश
[ ११५ जीवानां मोक्षस्य हेतुः वरं दर्शनं ज्ञानं चारित्रम् । — तानि पुनः त्रीण्यपि आत्मानं मन्यस्व निश्चयेन एवं उक्तम् ।।१२।।..
इस प्रकार दूसरे महाधिकारमें मोक्ष-फलके कथन की मुख्यताकर एक दोहासूत्र कहा ।
आगे उन्नीस दोहापर्यन्त निश्चय और व्यवहार मोक्ष-मार्गका व्याख्यान करते हैं-(जीवानां) जीवोंके (मोक्षस्य हेतुः) मोक्षके कारण (वरं) उत्कृष्ट (दर्शनं ज्ञानं चारित्रं) दर्शन ज्ञान और चारित्र हैं ( तानि पुनः ) फिर वे ( त्रीण्यपि ) तीनों ही (निश्चयेन) निश्चयकर (आत्मानं) आत्माको ही (मन्यस्व) जाने (एवं) ऐसा (उक्त) श्रीवीतरागदेवने कहा है, ऐसा हे प्रभाकरभट्ट; तू जान ।
भावार्थ-भेदरत्नत्रयरूप व्यवहार-मोक्ष-मार्ग साधक है, और अभेदरत्नत्रयरूप निश्चय-मोक्ष-मार्ग साधने योग्य है । इस प्रकार निश्चय व्यवहारमोक्ष-मार्गका साध्य-साधक भाव, सुवर्ण सुवर्ण-पाषाणकी तरह जानना । ऐसा ही कथन श्रीद्रव्यसंग्रहमें कहा है । “सम्मदसण" इत्यादि । इसका अभिप्राय यह है कि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र ये तीनों ही व्यवहारनयकर मोक्षके कारण जानने; और निश्चयसे उन तीनोंमयी एक आत्मा ही मोक्षका कारण है ।।१२।।
अथ निश्चयरत्नत्रयंपरिणतो निजशुद्धात्मैव मोक्षमार्गो भवतीति प्रतिपादयति
पेच्छइ जाणइ अणुचरइ अप्पि अप्पउ जो जि । दसणु णाणु चरित्तु जिउ मोक्खहं कारणु सो जि ॥१३॥
' त जानाति अनुचरति आत्मना आत्मानं य एव । दर्शनं ज्ञानं चारित्रं जीवः मोक्षस्य कारणं स एव ।।१३।। . . .
आगे निश्चयरत्नत्रयरूप परिणत हुआ निज शुद्धात्मा ही मोक्षका मार्ग है, ऐसा कहते हैं-(य एव) जो (आत्मना) अपने से (आत्मानं) आपको (पश्यति) देखता है, (जानाति) जानता है, (अनुचरति) आचरण करता है, (स एव) वही विवेकी (दर्शनं ज्ञानं चारित्रं) दर्शन ज्ञान चारित्ररूप परिणत हुआ (जीवः) जीव (मोक्षस्य कारणं) मोक्षका कारण है।
.. भावार्थ-जो सम्यग्दृष्टि जीव अपने आत्माको आपकर निर्विकल्परूप देखता है, अथवा तत्त्वार्थश्रद्धानकी अपेक्षा चंचलता और मलीनता तथा शिथिलता इनका