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________________ ११४ ] परमात्मप्रकाश भावार्थ-केवलज्ञानादि अनन्तगुण प्रगटरूप जो कार्यसमयसार अर्थात् शुद्ध परमात्माका लाभ वह मोक्ष है, यह मोक्ष भव्यजीवोंके ही होता है । भव्य कैसे हैं कि पुत्र कलत्रादि परवस्तुओंके ममत्वको आदि लेकर सब विकल्पोंसे रहित जो आत्म-ध्यान उससे जिन्होंने भावकर्म और द्रव्यकर्मरूपी कलंक क्षय किये हैं, ऐसे जीवोंके निर्वाण होता है, ऐसा ज्ञानीजन कहते हैं । यहां पर अनन्तसुखका कारण होनेसे मोक्ष. ही उपादेय है ॥१०॥ अथ तस्यैव मोक्षस्यानन्तचतुष्टयस्वरूपं फलं दर्शयतिदसणु णाणु अणंत-सुह समउ ण तुदृइ जासु । सो पर सासउ मोक्ख-फलु विजउ अस्थि ण तासु ॥११॥ दर्शनं ज्ञानं अनन्तसुखं समयं न त्रुटयति यस्या । तत् परं शाश्वतं मोक्षफलं द्वितीयं अस्ति न तस्य ।।११।।: इस प्रकार मोक्षका फल और मोक्ष-मार्गका जिसमें कथन है, ऐसे दुसरे महाधिकारके दस दोहोंमें मोक्षका स्वरूप दिखलाया। __ आगे मोक्षका फल अनन्त चतुष्टय है, यह दिखलाते हैं-(यस्य) जिस मोक्षपर्यायके धारक शुद्धात्माके (दर्शनं ज्ञानं अनंतसुखं) केवलदर्शन, केवलज्ञान, अनन्तसुख, और अनन्तवीर्य इन अनन्तचतुष्टयोंको आदि देकर अनन्त गुणोंका समूह ( समयं न त्रुटयति ) एक समयमात्र भी नाश नहीं होता, अर्थात् हमेशा अनंत गुण पाये जाते हैं। (तस्य) उस शुद्धात्माके (तत्) वही (पर) निश्चयसे (शाश्वतं फलं) हमेशा रहनेवाला मोक्षका फल (अस्ति) है, (द्वितीयं न) इसके सिवाय दूसरा मोक्षफल नहीं है, और इससे अधिक दूसरी वस्तु कोई नहीं है। भावार्थ-मोक्षका फल अनन्तज्ञानादि जानकर समस्तरागादिकका त्याग करके उसीके लिये निरन्तर शुद्धात्माकी भावना करनी चाहिये ॥११॥ अथानन्तरमेकोनविंशतिसूत्रपर्यन्त निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गव्याख्यानस्थलं कथ्यते तद्यथा-- जीवहं मोक्खहं हेउ वरु दंसणु णाणु चरित्तु । ते पुणु तिगिण वि अप्पु मुगि णिच्छएं एहउ वृत्तु ।।१२।।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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