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88 / आचार्य कुन्दकुन्द
लोकाकाश उससे भरा पडा है । यद्यपि वह खोखला है, उसका न आदि है न अन्त और न मध्य । वह इन्द्रियो के द्वारा भी ग्रहण नही किया जा सकता । वह अविभागी है । कुन्दकुन्द का यह विचार दो हजार वर्ष पूर्व का है । विना प्रयोगशाला के तथा लाइट, यत्र के विना ही उन्होने परमाणु को अपने दिव्य नेत्रो एव दिव्य ज्ञान की परखनली से देखा था, फिर भी वह सटीक उतरा । और अव अरबो-खरवो रुपयो की लागत की प्रयोगशाला मे वैठकर वैज्ञानिको की तीन-चार पीढियो के लगातार प्रयोग करते रहने के बाद भी देखिए कि उन्होने परमाणु के विषय मे क्या खोज की है ? उनका यह कथन पठनीय है"We can not see atoms either and never shall be able too even if they were a million times bigger it would still be impossible to see them even with the most powerful microscope that has been made"
अर्थात् हम लोग परमाणु को न तो देख सके हैं और न आगे भी देख सकेंगे । भले ही दस लाख परमाणु एक साथ भी मिल जावें, तो भी हम उसे शक्तिशाली दूरवीन से भी नही देख सकेंगे।