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________________ आचार्य कुन्दकुन्द / 87 सच्चा श्रमण कौन -- 7 समसत्तुवधवग्गो समसुहदुक्खो पससणिदसमो । समलोठ कचणो पुण जीविदमरणो समो समणो ॥ ( प्रवचन सार 3 / 41 ) - जो शत्रु एव मित्र, सुख एव दुख, प्रशसा एव निंदा तथा पत्थर एव सोना और जीवन एव मरण मे समवृत्ति वाला है, वही ( यथार्थत सच्चा ) श्रमण है । सुपात्र 'को दान एव भावों की निर्मलता आवश्यक --- 8 पत्तविणादाण य सुपुत्तविणा वहुधण महाखेत्त । चित्तविणा वयगुणचारित णिक्कारण जाणे ॥ ( रयण० 30 ) --- जिस प्रकार सुपुत्र के विना विपुल धन और बडे-बडे सेतो का होना व्यर्थ है, एव अच्छे पात्र के बिना दान देना भी निरर्थक है । उसी प्रकार भावो के विना व्रत, गुण और चारित्र का पालन भी निष्फल है । परमाणु का लक्षण - 9 अत्तादि अत्तमज्झ, अत्तंत णेव इदिए गेज्झ । अविभागी ज दव्व, परमाणू त वियाणाहि ॥ ( नियम ० 26 ) - स्वस्वरूप ही जिसका आदि है, स्वस्वरूप ही जिसका अन्त हैं, जो इंद्रियो के द्वारा ग्रहण नही किया जा सकता और जो अविभागी है, उस द्रव्य को परमाणु जानो I विशेष— भौतिक जगत् के विषय मे कुन्दकुन्द ने बहुत लिखा है । वह अलग ही चर्चा का विषय हो सकता है। उसका एक छोटा-सा उदाहरण ही यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है । कुन्दकुन्द कहते हैं कि परमाणु अर्थात् Atom बहुत शरारती एव नखरेवाज है, साथ ही महान शक्तिशाली भी । समस्त
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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