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________________ आचार्य कुन्दकुन्द / 61 ध्रुवत्व (Permanence) गुण वर्तमान रहता है । इस प्रसग मे Democritus का यह कथन विचारणीय है- "Nothing can never become something and something can never become anything" जीवद्रव्य और आधुनिक विज्ञान प्राचीन एव नवीन प्रयोगशालाओ मे आचार्य कुन्दकुन्द आदि ने जीव को द्रव्य माना है और बनाया है कि आत्मा, चैतन्य एव ज्ञान ये सभी जीव के पर्यायवान्त्री नाम हैं । उमे अजरअमर भी कहा गया है । व्यवहार मे जो यह कहा जाता है कि 'गुणसेन -मर गया' वह लोक व्यवहार की दृष्टि से तो ठीक है, किन्तु निश्चयनय से 'गुणसेन' को मृत कहना उपयुक्त नही, क्योकि आत्मा तो निश्चय हो अजरअमर है। हाँ, यह कहा जायगा कि 'गुणसेन की मनुष्य पर्याय बदल गई ।' इस जीववाद अथवा आत्मवाद पर प्राचीनकाल से ही विस्तृत ऊहापोह चलता आ रहा है । विचारको में कभी-कभी अपने मत के समर्थन मे उग्रता भी देखी गई है। उनमे परस्पर मे विभाजन भी होता रहा । एक पक्ष आत्मवादियो मे बँट गया और दूसरा अनात्मवादियो मे । अपने-अपने पक्ष के समर्थन मे उन विचारको ने पिछनी लगभग दो सहस्राब्दियो मे एक विशाल दार्शनिक साहित्य का निर्माण भी कर दिया। मूल समस्या का सर्व-सम्मत समाधान फिर भी दृष्टिगोचर न हो सका । जीवात्म-विचार के क्षेत्र मे जैनाचार्य आधुनिक विज्ञान से बहुत आगे प्राकृत एव संस्कृत के जैन साहित्य मे भी द्रव्य - वर्णन के प्रसग मे जीवद्रव्य का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विचार किया गया है और उसकी विशेषता यह है कि 1. महावीरस्मृति ग्रन्थ, पृ० 117
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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