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________________ 26/ आचार्य कुन्दकुन्द तानुसार भावुक स्नेह-प्रदर्शन भी। जिसमे स्वर्णिम अतीत की पृष्ठभूमि की झांकी हो और वर्तमान की यथार्थता का प्रदर्शन तथा भविष्य की भूमिका का सकेत भी। स्वस्थ समाज एव राष्ट्र-निर्माण के लिए इस प्रकार के सरचनात्मक साहित्य की महती आवश्यकता है। हमारी दृष्टि से प्रस्तुत पाहुडसाहित्य सामान्य जनता के लिए कुन्दकुन्द द्वारा प्रदत्त वस्तुत स्नेहसिक्त उपहार तथा प्यार का पाथेय माना जा सकता है। __ पाहुड (प्राभृत) साहित्य की विधा कुन्दकुन्द के अन्य ग्रन्थो की अपेक्षा भिन्न है। पूर्वोक्त साहित्य मे जहाँ वे प्रवचन-शास्त्री, तत्त्वोपदेष्टा एव आत्मार्थी चिन्तक के रूप मे दिखाई देते है, वही प्रस्तुत साहित्य मे वे एक तेजस्वी, समाजोद्वारक एव सशक्त अनुशास्ता के रूप मे दिखाई पड़ते है। पाहुडसाहित्य एक तीखा अकुश भी है, जो माधको को शिथिलाचार की ओर बढने से रोकता है। प्रतीत होता है कि कुन्दकुन्द-काल मे समाज मे शिथिलाचार का प्रवेश होने लगा था। उसे उससे बचाने तथा सावधान करने हेतु पाइड-साहित्य का प्रणयन क्यिा गया था। यह साहित्य साधको के लिए मान्य आचार-सहिता (code of conduct) था। कहा जाता है कि कुन्दकुन्द ने 84 पाहुडो की रचना की थी किन्तु उनमे से वर्तमान मे 8 पाहुड ही उपलब्ध एव प्रकाशित है। यह पाहुडसाहित्य परस्पर मे सर्वथा स्वतन्त्र साहित्य है अर्थात् एक पाहुड से दूसरे पाहुड के विपय का कोई सम्बन्ध नही। __ श्रुतसागर सूरि (16वी सदी) को अपने समय मे सम्भवतः छह पाहुड ही उपलब्ध हो सके थे, अत उन्होने उन्ही पर पाण्डित्यपूर्ण सस्कृत टीका लिखी, जो षट्प्राभूतादिसग्रह के नाम से प० नाथूराम प्रेमी के सत्प्रयत्न से सन् 1920 मे माणिकचन्द्र सीरीज़ से सर्वप्रथम प्रकाशित हुए। बाद मे दो पहुड और उपलब्ध हुए । उनका भी उसमे समावेश कर लिया गया । अष्टपाहुडो पर हिन्दी मे प० जयचन्द जी छावडा की राजस्थानी भापा-टीका प्रसिद्ध है । वाद मे अन्य विद्वानो ने भी उसके अनेक सस्करण प्रकाशित किए। अप्टपाहुड के अन्तर्गत निम्नलिखित 8 रचनाएं आती हैं(1) दर्शनपाहुड (36 गाथाएँ मात्र) (2) सूत्रपाहुड (27 गाथाएँ ,)
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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