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________________ आचार्य कुन्दकुन्द / 25 उक्त ग्रन्थ का वर्ण-विषय 12 अधिकारो मे विभक्त है। इसमे कुल 187 गाथाएँ हैं । अधिकारों के नाम इस प्रकार हैं 1 जीवाधिकार (19 गाथाएँ) (18 (18 (21 (18 2 अजीवाधिकार 3. शुद्धभावाधिकार 4 व्यवहारचारित्राधिकार 5 परमार्थप्रतिक्रमणाधिकार 6 निश्चयप्रत्याख्यानाधिकार (12 7 परमालोचनाधिकार ( 6 8. शुद्ध निश्चयप्रायश्चित्ताधिकार ( 9 9 परमस माध्यधिकार 10 परमभक्त्यधिकार 11 निश्चयपरमावश्यकाधिकार 12 शुद्धोपयोगाधिकार }) 33 "} 31 33 " 27 " 27 ) "7 } (12 17 (18 (28 13 प्रस्तुत ग्रन्थ पर मुनिराज पद्मप्रभ मलधारिदेव ( 12 वी सदी) कृत 'तात्पर्यवृत्ति' नाम की संस्कृत टीका एव ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी कृत हिन्दी - टीका (1916 ई० ) अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है | ) } ) ) ) } ) 5 पाहुडसाहित्य 'पाहुड' ठेठ जनभाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - उपहार अथवा सस्नेह भेंट | भोजपुरी बोली, जो कि बिहार की प्रमुख वोलियो मे अग्रगण्य है, आज भी इसी अर्थ मे उसका प्रयोग किया जाता है । भाचार्य कुन्दकुन्द प्रबुद्ध विचारको के लिए तो समयसार आदि अनेक विचारपूर्ण प्रौढ ग्रन्थ लिखकर उन्हे कृतार्थ कर चुके थे किन्तु सामान्य जनता, जिसमे अर्धशिक्षित, अशिक्षित, साधनविहीन एव उपेक्षित कर्मकरो की सख्या अधिक थी, उनके लिए भी लिखा जाना युग की माँग थी। ऐसी जनता के लिए विधि - निषेध विधा का सीधी-सादी सरल भाषा तथा मुत्तक शैली मे कुछ ऐसा लिखा जाना आवश्यक था, जिसमे ऋजुजडो एव वक्रजडो को उनके प्रशस्त मार्ग से स्खलित होने पर आवश्यकतानुसार तर्जना वर्जना भी हो और आवश्यक
SR No.010070
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Vidyavati Jain
PublisherPrachya Bharti Prakashan
Publication Year1989
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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