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________________ आचार्य कुंदकुंददेव अर्थ :- जिनका नाम प्रारंभ से पद्मनंदि था। बाद में जिन्हें कोण्डकुन्द मुनिश्रेष्ठ यह नामाभिधान प्राप्त हुआ। मुनि अवस्था के संयम से जिन्हें चारणऋद्धि प्राप्त हुई थी, ऐसे भूलोक में प्रसिद्ध...... श्रीपद्मनंदीत्यनवद्यनामाचार्यशब्दोत्तर कोण्डकुन्दः । द्वितीयमासीदभिधानमुद्यच्चरित्रसंजातसुधारणार्द्धि ॥ - श्रवणबेलगोल शिलालेख ४२ / ४३ / ४७ / ५० अर्थ :- निर्दोष और उत्स्फूर्त चारित्र से जिन्हें उत्तम चारणऋद्धि की प्राप्ति हुई थी और जिन्हें पद्मनन्दि ऐसा निर्दोष नामाभिधान था, इनका ही दूसरा नाम आचार्य कोण्डकुन्द था । आचार्य कुन्दकुन्ददेव अपने सम्यक् तपानुष्ठान के सामर्थ्य से अनुपम - अलौकिक विदेहक्षेत्र में गये । वहाँ तीर्थकर सीमन्धर भगवान I के समवशरण में आठ दिन रहे। भगवान की दिव्यध्वनि साक्षात् श्रवणकर मन तो सन्तुष्ट हुआ ही था और आत्मा भी आनंदित हो उठी । आचार्यदेव सदा ज्ञान, ध्यान एवं तपोनुष्ठानों में तो निरत रहते थे ही, भगवान के साक्षात् सानिध्य से उनकी आत्मानुभूति भी प्रगाढ़ता को प्राप्त हुई | सोने में सुहागा यह लोकोक्ति चरितार्थ हो गयी । ६६ अध्यात्मविद्या एक अनुपम आनंददायक रसायन है | अध्यात्म, आत्मसुधारस नामक अलौकिक अमृत है। इसके अवलम्बन से ही जीव स्वात्मानुभवरूप आनंदरस का पान करता है । यह आनंद निर्विकल्प, शब्दातीत और स्वानुभवगम्य है । चिरकाल से सुख के लिए उत्कण्ठित भव्य आत्मा अध्यात्म से ही सुखी होता है, यह '
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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