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________________ ७६ अपूर्व अद्भुत प्रेरणा दे रही थी। अंतरंग की गहराई से कुछ नया परिवर्तन भी बाहर आना चाहता था । उसके प्रगट होते ही, राजा के बाह्यांगों में भी सहजरूप से हलन चलन प्रारंभ हो गया । गाथा के एक पद के उच्चारण के साथ शरीर से भी एक-एक वस्त्राभूषण निकलना प्रारंभ हुआ । सूर्य के समान चमकने वाले मस्तक का मनोहर राजमुकुट मस्तक से उतर गया । सर्वांग को आवृत्त करनेवाला जरतारी शोभादायक धवल दुकूल दूर हो गया । गले की शोभा बढ़ानेवाले नवरत्न हार ने भी अपना स्थान त्याग दिया । धारण की हुई वज्र की अंगूठी और भुजकीर्ति ढीले होकर गिर पड़े । . आज राजा ने न जाने किस शुभ मुहूर्त में पर्वतारोहण किया था। मानों पर्वत पर चरण रखते ही मोक्षमार्गारोहण भी प्रारंभ हो गया । उपस्थित नर-नारी राजा के इस त्यागमय जीवन का वैराग्यमय दृश्य आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे । सारा मुनिसंघ जानता था कि यह प्रभाव भावपाहुड़ शास्त्र के स्वाध्याय का है । राजा शिवस्कन्धवर्मा का दीक्षा ग्रहण और मुनिसंघ का तमिलनाड से विहार करने का समाचार विद्युत वेग से आस-पास के गांवों में फैल गया। राजा शिवस्कन्धवर्मा के प्रेमाग्रह से और कुछ दिन मुनिसंघ तमिलनाड में रह सकता है, ऐसे समझने वाले लोगों को राजा का दीक्षाग्रहण करना निराशा का कारण बन गया । मुनिसंघ को रुकने के लिए आग्रह करनेवाला राजा ही परम दिगंबर मुनि बनकर उनके पीछे छाया के समान चल दिया तो संघ को कौन रोक सकता था ? इसी कारण राजकुमार श्रेष्ठीवर्ग और अन्य
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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