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________________ ३१ आचार्य कुंदकुंददेव में किसी के ऊपर कुछ दुःख संकट आनेपर सिद्ध स्वामी की भक्ति करने से दुःख-संकट दूर हो जाते हैं। इस पहाड़ी के ऊपर अथवा आस-पास के प्रदेशों में जो भी चोरी-हिंसा आदि पाप करता है उसे कोई न कोई संकट अवश्य आ जाता है। इस तरह इस क्षेत्र के सम्बन्ध में वहाँ के लोगों की भक्ति श्रद्धा जानकर हमें आश्चर्य हुआ | इस स्थान को हमें दिखाने आए हुए गरीब, युवा लोगों को दयाभाव से कुछ रूपये देने का प्रयास किया तो उन्होंने “सिद्धस्वामी के दर्शनार्थ आनेवाले लोगों से हम पैसा लेंगे तो हमारा जीवन दु:खमय तथा बर्बाद हो जायगा-हमें पाप लगेगा"- ऐसा कहकर रुपये लेने से इन्कार कर दिया । इन सभी घटनाओं के निरीक्षण से इस क्षेत्र की महिमा आज भी जन-मानस में जीवित है-यह स्पष्ट हुआ । यहाँ प्राप्त प्राचीन अवशेषों से ज्ञात होता है कि यह प्रदेश प्राचीन काल में जैनों का केन्द्र रहा था । यहाँ के चन्नकेश्वर मंदिर के पास जमीन पर एक शिलाखण्ड पड़ा है। उसके ऊपर जैन तीर्थकरों की पद्मासन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । उसी के नीचे अति कष्टपूर्वक पढ़ने लायक शिलालेख है। इस शिलालेख के प्रारंभ में जिनेन्द्र भगवान की प्रार्थना खुदी हुई है, जो इस क्षेत्र की महिमा को व्यक्त करनेवाली जानकारी देती है । उस पर आगे लिखा है :-यह स्थान विश्व में सर्वश्रेष्ठ है । संसार-सागर को पार करने के लिए नौका समान अनेकांत विद्या है। उस विद्या के बल से विश्व को जीतने वाले यति श्रेष्ठपद्मनंदि भट्टारक की यह जन्मभूमि है। इस शिलालेख के दूसरे बाजू पर तेलगू भाषा में भी शिलालेख है। अनेक लेख प्राचीन भाषा में भी उपलब्ध हैं । यहाँ ही ईसा की
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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