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________________ ३० आचार्य कुंदकुंददेव प्राचीन काल में कोण्डकुंद या कोण्डकुन्दे नामक एक बहुत बड़ा शहर था, जहां वर्तमान में इसी नाम से छोटा सा ग्राम है; गांव के निकट लगभग १५० फीट ऊँचा एक पर्वत है जिसके ऊपर एक ही नीम का वृक्ष है । इसी वृक्ष के पास साड़े तीन फीट ऊँची अरहंत भगवान की दो खडगासन मूर्तियाँ हैं । इन मूर्तियों के मस्तक के ऊपर पाषाण में उकेरे हुए तीन-तीन छत्र हैं । और दोनों तरफ चामरधारी देव खड़े हैं । मूर्ति के नीचे कोई भी चिन्ह नहीं है, अत: किन तीर्थकरों की मूर्तियाँ हैं यह कहना असंभव है। इन मूर्तियों की रक्षा के लिए तीनों तरफ पाँच पाँच फीट ऊँची दीवार बनी हुई है, जिन पर छत नहीं है । यहाँ के लोग इन मूर्तियों को सिद्धस्वामी कहते हैं और वैदिक सम्प्रदाय के अनुसार पूजा होती है। यहाँ गांव में अथवा क्षेत्र पर एक भी जैन नहीं है। इन मूर्तियों से लगभग ३० फीट की दूरी पर एक समतल विशाल शिलापर जम्बूद्वीप का खुदा हुआ सुन्दर नक्शा है और वहीं दूसरे शिलापर करीब छह फीट लम्बा दिगम्बर मुनि का खड्गासन रेखाचित्र है, जिसके नीचे पत्थर में खुदा हुआ कमल पुष्प है। आचार्य कुन्दकुन्द देव के स्मरणार्थ इसे बनाया गया होगा-ऐसा लगता है। यहाँ रहनेवाले लोगों से पूछा तो चर्चा से यह बात समझ में आई कि उन्हें जैनत्व का कुछ भी परिचय नहीं है । ये लोग इस छोटी-सी पहाड़ी को सिद्धस्वामी का निवास स्थान कहते हैं । सिद्धस्वामी के विषय में पूछने पर कहते हैं-समय पर वर्षा न हो तो इस पहाड़ी पर आकर पूजा-प्रार्थना करने से वर्षा होती है। तथा किसी परिवार १. श्री पी. बी. देसाई द्वारा लिखित "जैनिज्म इन साउथ इंडिया एण्ड जैन एफिग्राफ्स" पृष्ठ-१५२ से १५७ उद्धृत -
SR No.010069
Book TitleKundakundadeva Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM B Patil, Yashpal Jain, Bhartesh Patil
PublisherDigambar Jain Trust
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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