________________ 18] [ प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम इसप्रकार हम देखते हैं कि यह नियमसार नामक परमागम मुख्यतः मोक्षमार्ग के निरुपचार निरूपण का अनुपम ग्रन्थाधिराज है / यह मात्र विद्वानों के अध्ययन की वस्तु नहीं, अपितु प्रत्येक प्रात्मार्थी के दैनिक पाठ की चीज है। __ इस युग में प्राचार्य कुन्दकुन्द के सम्पूर्ण साहित्य के गहन अध्येता एवं प्रबलप्रचारक आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी नियमसार पर प्रवचन करते हुए आनन्दविभोर होकर कहते हैं : "परमपारिणामिकभाव को प्रकाशित करनेवाला श्री नियमसार परमागम और उसकी टीका की रचना छठवें-सातवें गुणस्थान में झूलते हुए महासमर्थ मुनिवरों द्वारा द्रव्य के साथ पर्याय की एकता साधतेसाधते हो गई है / जैसे शास्त्र और टीका रचे गये हैं, वैसा ही स्वसंवेदन वे स्वयं कर रहे थे। परमपारिणामिकभाव के आंतरिक अनुभव को ही उन्होंने शास्त्र में उतारा है / प्रत्येक अक्षर शाश्वत, टंकोत्कीर्ण, परमसत्य, निरपेक्ष, कारणशुद्धपर्याय, स्वरूपप्रत्यक्ष, सहजज्ञान आदि विषयों का निरूपण करके तो मुनिवरों ने अध्यात्म की अनुभवगम्य अत्यंतात्यंत सूक्ष्म और गहन बात को इस शास्त्र में स्पष्ट किया है। सर्वोत्कृष्ट परमागम श्री समयसार में भी इन विषयों का इतने स्पष्ट रूप से निरूपण नहीं है / अहो ! जिसप्रकार कोई पराक्रमी कहा जानेवाला पुरुष वन में जाकर सिंहनी का दूध दुह लाता है, उसीप्रकार प्रात्मपराक्रमी महा मुनिवरों ने वन में बैठे-बैठे अन्तर का अमृत दुहा है। सर्वसंगपरित्यागी निर्ग्रन्थों ने वन में रहकर सिद्ध भगवन्तों से बातें की हैं और अनन्त सिद्ध भगवन्त किसप्रकार सिद्धि को प्राप्त हुए हैं, उसका इतिहास इसमें भर दिया है।" 'परमपारिणामिकभावरूप निज शुद्धात्मतत्त्व ही एकमात्र पाराध्य है, उपास्य है, श्रद्धेय है, परमज्ञेय है / इसके श्रद्धान, ज्ञान एवं ध्यानरूप पावन परिणतियां ही साधन हैं, मार्ग हैं, रत्नत्रय हैं, नियम हैं तथा इन्हीं पावन परिणतियों की परिपूर्णता ही साध्य है, मार्गफल है, निर्वाण है।' - इस परमार्थ सत्य का प्रतिपादक ही यह नियमसार नामक परमागम है / मेरे साथ सम्पूर्ण जगत भी इस अमृत के सागर में निरन्तर आकण्ठ निमग्न रहे - इस पावन भावना के साथ विराम लेता हूँ।