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________________ पंचास्तिकायसंग्रह ] [85 द्रव्यसंग्रह में भी पंचास्तिकायसंग्रह के समान ही अधिकारों का विभाजन किया गया है। अधिकारों के नाम भी वैसे ही हैं। दोनों के नाम के आगे 'संग्रह' शब्द का प्रयोग है। यद्यपि एक का नाम द्रव्यसंग्रह और दूसरे का नाम पंचास्तिकायसंग्रह है, तथापि दोनों के प्रथम अधिकार में पंचास्तिकायों और द्रव्यों का एक-सा ही वर्णन है। जीवास्तिकाय और अजीवास्तिकाय द्रव्य का वर्णन जिस रूप में पंचास्तिकायसंग्रह में है, उसी रूप में द्रव्यसंग्रह में भी पाया जाता है। अन्तर यह है कि दूसरे अधिकार में जब नव पदार्थों का वर्णन होता है तो द्रव्यसंग्रह में उन्हें छोड़ ही दिया गया है, सीधे प्रास्रव पदार्थ का वर्णन प्रारम्भ कर दिया है / जीव-अजीव का वर्णन द्रव्यों के सन्दर्भ में हो चुका है - यह मानकर संक्षिप्त करने के लोभ में ही उन्हें छोड़ा गया है। एक बात अवश्य उल्लेखनीय है कि नव पदार्थों का क्रम द्रव्यसंग्रह में पंचास्तिकायसंग्रह के अनुसार न रखकर तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार रखा गया है। प्राचार्य कुन्दकुन्ददेव द्वारा रचित पंचास्तिकायसंग्रह एक ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है; जिसके अध्ययन बिना समयसार, प्रवचनसार जैसे महान ग्रन्थों का मर्म समझ पाना सहज सम्भव नहीं है; तथापि उनकी अपेक्षा इसके कम प्रचलित होने का कारण द्रव्यसंग्रह द्वारा इसकी विषय-वस्तु सम्बन्धी जानकारी की पूर्ति हो जाना ही रहा है। समयसार के समान ही निरन्तर इसके पठन-पाठन की आवश्यकता है। प्राचार्य अमृतचन्द्र की 'समयव्याख्या' टीका से अलंकृत इस पंचास्तिकायसंग्रह ग्रन्थ के अध्ययन-मनन में वस्तु-व्यवस्था के सम्यग्ज्ञान के साथ-साथ जो आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त होगा, वह अन्यत्र असम्भव नहीं तो दुर्लभ अवश्य है; आत्मार्थी बन्धुप्रों से हार्दिक अनुरोध है कि वे इसका स्वाध्याय अवश्य करें; एक बार नहीं, बार-बार करें। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि इसके अध्ययन-मनन से उन्हें आत्मशान्ति का मार्ग अवश्य प्राप्त होगा। सभी पात्मार्थी इसका अध्ययन-मनन कर सुखी व शान्त होंइस पावन भावना के साथ विराम लेता हूँ।
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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